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देवलोक में शाश्वत जिनप्रतिमा समक्ष स्थित पूजा की स्थायी सामग्री में दर्पण होता है। प्रत्येक जिनालयों में दर्पण पूजा के उपकरण स्वरुप दर्पण अवश्य देखने को मिलेगा। श्री तीर्थंकर देवो के जन्म समय पर 56 दिक्कुमारिका के सूतिकर्म में 8 दिक्कुमारिका
प्रभु और माता समक्ष मंगल दर्पण ले कर खडी रहती है। 8.2 दर्पण दर्शन प्रभाव :
दर्पण दर्शन शुभ सगुन स्वरूप होने के कारण, दर्पण देख कर यात्रा की शुरुआत करना मंगलदायक है। जिनालयों में जहाँ मूलनायक परमात्मा को द्रष्टिरोध होता हो, उसे दूर करने के लिए भी द्रष्टि के समक्ष दर्पण रखा जाता है। 18 अभिषेक विधान में 15वाँ अभिषेक के बाद जिनबिंबो को दर्पण दर्शन करवाने का विधान प्राचीन प्रतिष्ठाकल्पों में कहा गया है। वर्तमान में होते 18 अभिषेक में भी चन्द्रसूर्य के दर्शन के बाद दर्पण दर्शन भी कराना होता है। दर्पण दर्शन के द्वारा, नेगेटीव ऊर्जा दूर करने का प्रयोजन 18 अभिषेक विधान में है।
जय जय होजो-मंगल होजो। जैन संघ का मंगल होजो। विश्व मात्र का मंगल होजो।
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