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________________ खाये-खिलायें जातें हैं, यह एक मांगलिक उपचार है। कोई शुभ कार्य के लिए घर से निकलते समय सामने आकस्मिक कोई गाय या हाथी आ जाएं तो वे अच्छे सुगुन माने जाते है। वरघोडे में बहनें सिर पर कलश(गागर-घड़ा) ले कर गुरु भगवंत के सामने आती हैं वो भी इस स्वरुप का ही मंगलविधान है। शुभ मंगल के लिए प्रत्येक की श्रद्धा की मात्रा भी तो अलगअलग होती है, और मंगल की रुचि भी प्रत्येक की अलग-अलग होती है। भगवान का या अपने इष्ट देव-देवी का दर्शन-वंदन करने के बाद, या फिर उनका मंत्रजाप करके ही कार्य की शुरुआत करने वाले भी हमारी आसपास देखने को मिलेंगे। वैसे भी, आज व्यक्ति अनेक प्रकार के अपमंगलो से घिरा हुआ है। कभी आर्थिक विटंबणा तो कभी शारिरीक, मानसिक आधिव्याधि-उपाधि-अशांति-असमाधि और संक्लेश के निमित्त डग डग पर जीव को हेरान-परेशान कर देते है । कभी कभार आकस्मिक आपत्ति में आदमी उलझ जाता है । ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति अतीन्द्रिय सहाय की इच्छा करता है । अपमंगल को दूर करे ऐसे मंगल की शरण में जाने की इच्छा करता है, जाता है। अ-2 मंगल अर्थात् ??? मंगल का सीधा सरल अर्थ है, जिनसे हमारा कल्याण हो वही मंगल । मंगल यानी शुभ, पवित्र, पापरहित, विघ्नविनाशक पदार्थ या व्यक्ति। जो विघ्नों का विनाश करे वो मंगल । जो चित्त को प्रसन्न करें वो मंगल। जो इच्छित कार्यसिद्धि करायें वो मंगल | जो सुख की-पुण्य की परंपरा का विस्तार करें वो मंगल। जो जीवन में धर्म को खिंच लाये वो मंगल ।
SR No.034073
Book TitleAshtmangal Aishwarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysundarsuri, Saumyaratnavijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2016
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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