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पागदभासामूला दिस्सदि ववहार भारदे देसे। पादेसिगभासासुं अज्जवि सङ्घा सुणज्जति ॥ १ ॥ माआअ जा भासा सा सव्वेसिं हियए देदि सुहं । हो सहजे जायदि परोप्परं भासमाणाणं ॥ २ ॥ भासा सद्दवियारो भासाए सव्वभावसब्भावो । भासाए संका संकदिविण्णाणसुहसमायारो ॥३॥ - मुनि प्रणम्यसागर
प्राकृत भाषा मूल है। भारतदेश में इसका व्यवहार दिखाई देता है। प्रादेशिक भाषाओं में आज भी प्राकृत के शब्द सुने जाते हैं ॥1 ॥
माता की जो भाषा है वह सभी के हृदय में सुख देती है।
माँ की भाषा में परस्पर बोलने वालों में स्नेह सहज उत्पन्न होता है ॥2 ॥
भाषा शब्द का विकार है, भाषा से ही सभी भावों का सद्भाव होता है,
भाषा से ही संस्कार होता है, भाषा से ही संस्कृति, विज्ञान और सुख का आचरण होता है।