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शिक्षाप्रद कहानियां
खेवइया ये सब बातें सुनकर मन ही मन बड़ा दुःखी हो रहा था। क्योंकि उस बेचारे ने तो इन सबकी तरह दर्शनशास्त्र पढ़ा नहीं था जो कि साम्य भाव धारण कर लेता। लेकिन फिर भी वह मन ही मन खुश भी हो रहा था कि सभी तो हर काम में दक्ष नहीं हो सकते? मैं अपने काम में तो निपुण हूँ ही और मुझे इन विद्वानों की तरह अपने काम पर घमण्ड भी तो नहीं है। बड़े-बूढ़ों ने तो यही समझाया है कि कभी भी व्यक्ति को घमण्ड नहीं करना चाहिए। और वह यह सब सोच ही रहा था कि अचानक नदी में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगी। वह तुरन्त अपने व्यवहारिक ज्ञान से समझ गया कि नदी में भयंकर तुफान उठ गया है और नाव का सुरक्षित बचना सम्भव नहीं । अतः उसने तुरन्त दार्शनिकों से कहा कि- 'क्या आप सब लोग तैरना जानते हैं?"
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यह सुनते ही वे सब एक साथ बोले- नहीं, हम तैरना नहीं जानते खेवइये को उन सब पर बहुत दया आ गई और उसने उन सबको किसी तरह बारी-बारी अपनी पीठ पर लादकर नदी से बाहर निकाला। और वह उन महाशयों से बोला- 'यह जरुरी नहीं होता कि हर आदमी हर काम में निपुण हो। कहा भी जाता है कि- सुईं के स्थान पर सुईं ही काम आती है तलवार नहीं। और हाँ ! देखों मैं पढ़ा-लिखा शास्त्रज्ञ विद्वान् तो हूँ नहीं लेकिन, मेरे बुजुर्गों ने मुझे यह शिक्षा अवश्य दी है कि कभी भी घमण्ड नहीं करना चाहिए और मुसीबत में दूसरों के काम आना चाहिए। बस, मैं तो उसी शिक्षा का पालन करना जानता हूँ। और यही मेरी विद्वता भी है।
३५. भलाई व्यर्थ नहीं जाती
किसी शहर में एक गरीब परिवार रहता था। परिवार में कई बहन-भाई थे। बड़े लड़के को पढ़ने का बहुत शौक था। लेकिन, माँ - बाप की आमदनी इतनी नहीं थी कि वे लड़के को पढ़ा सके। अत: वह लड़का अपनी पढ़ाई का खर्च जुटाने के लिए सुबह के समय घर-घर जाकर समाचार पत्र बाँटता था। जिससे उसका पढ़ाई का खर्च चल जाता