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शिक्षाप्रद कहानिया
59 कि तुम इस पचड़े में मत पड़ो। और हाँ इन तृष्णाओं का कभी अन्त नहीं होता है। और होता है तो बहुत बुरा होता है।
लेकिन, कहते हैं न कि 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि' वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। और गुरु जी से बोला चाहे कुछ भी हो मुझे तो राजकुमारी से विवाह करना है।
यह सुनकर गुरु जी बोले- तो देख भाई ब्राह्मण देवता, मैं इस निन्दनीय कार्य में तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। अतः तू कोई और दरवाजा देख ले।
यह सुनकर ब्राह्मण गुरु जी को अनाप-सनाप बकते हुए वहाँ से चला गया। और चलते-चलते एक तान्त्रिक गुरु के पास पहुँच गया। और उनसे कहने लगा कि- 'अगर आप मुझे ऐसी तान्त्रिक विद्या सिखा दें या उसका उपयोग करके आप मेरी अभिलाषा की पूर्ति करवा दें तो मैं आपको राजगुरु बना दूंगा।'
"लोभ पाप का बाप' होता है। यह सर्वविदित सत्य है और मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी, भला तान्त्रिक कैसे उससे बचता? अतः वह इस कुकृत्य को करने के लिए तैयार हो गया। और ब्राह्मण से बोला'तुम आँखें बन्द करके बैठ जाओ।' और जैसे ही ब्राह्मण ने आँखें बन्द की तो तान्त्रिक ने कुछ मन्त्र-तन्त्र पढ़े और उसके मुख पर जल के छीटें मारे।
ब्राह्मण ने जब आँखें खोली, तो उसने स्वयं को राजसी वस्त्रों, आभूषणों, हथियारों आदि से युक्त पाया। उसके पीछे हजारों सैनिक सशस्त्र खड़े थे। और उसने तो तुरन्त सैनिकों को राजा पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ और संयोगवश राजा हार गया और उसे बन्दी बना लिया गया। ब्राह्मण ने जबरदस्ती राजकुमारी से विवाह कर लिया और स्वयं को राजा घोषित कर राज्य करने लगा।