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शिक्षाप्रद कहानियां
के बिना इच्छित वस्तुएं प्राप्त नहीं होती हैं।
धर्मादयो हि हितहेतुतया प्रसिद्धाः, धर्माद्धनं धनत इहितवस्तुसिद्धिः। बुद्ध्वेति मुग्ध! हितकारि विधेहि पुण्यं, पुण्यैर्विना नहि भवन्ति समीहितार्थाः॥
अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- ये वास्तव में स्पष्टतः जीव के हित के लिए संसार में प्रसिद्ध हैं। इस स्वर्ग और मोक्ष के कारणभूत धर्म से इन्द्रियसुख की प्राप्ति का कारणभूत धन प्राप्त होता है, धन से इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है- ऐसा समझकर हे जीव! तू पुण्य को अर्जित कर। भिन्न-भिन्न प्रकार के सुखों को देने वाले पुण्य के बिना भली भाँति चाहे गये पदार्थ प्राप्त नहीं होते।
२७. व्यर्थ की जिज्ञासा
कई बार मनुष्य के मन में व्यर्थ की जिज्ञासाएं उत्पन्न हो जाती हैं, जिनको शान्त करने के लिए वह अपना अमूल्य समय नष्ट कर देता
बौद्धधर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध के पास एक दिन उनका शिष्य मलुक्यपुत्र आकर बोला- 'भगवान्! इतने दिन हो गए मुझे पूछते हुए लेकिन, आपने आज तक यह कभी नहीं बताया कि मृत्यु के उपरान्त पूर्ण बुद्ध रहते हैं या नहीं?' ।
यह सुनकर महात्मा बुद्ध बोले- 'हे! मलुक्यपुत्र! तुम मुझे यह बतलाओ कि भिक्षु होते समय क्या मैंने तुमे यह कहा था कि तुम मेरे ही शिष्य बनना?'
वह बोला- 'नहीं तो भगवान्!'
तब महात्मा बुद्ध एक दृष्टान्त देते हुए बोले- 'यदि किसी व्यक्ति का अचानक एक्सीडेंट हो जाए उसे चोट लग जाए, खून बहने