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________________ 40 शिक्षाप्रद कहानिया एक दिन सत्यपाल ने माँ से निवेदन किया- मैं आगे पढ़ने के लिए शहर जाना चाहता हूँ। आप मुझे आज्ञा दें। यह सुनकर वह बोली- बेटा! शहर यहाँ से बहुत दूर है। और रास्ते में बीहड़ जंगल पड़ता है। और तेरे बिना मेरा दिल भी इस घर में नहीं लगेगा। इसलिए तुझे शहर भेजने से मेरा दिल घबराता है। यह सुनकर वह बोला- माता जी, मेरी भलाई और उज्ज्वल भविष्य के लिए आप कुछ वर्षों के लिए दिल मजबूत करें। विद्या प्राप्त कर जब मैं लौटूंगा तो भगवान् के आशीर्वाद से और विद्या की प्राप्ति से हमारे सब दुःख दूर हो जाएंगे तथा हम सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करेंगे। और रही बात मार्ग की तो आप उसकी चिन्ता ही न करें। कल ही व्यापारियों का एक समुह शहर जा रहा है। मैं उन्हीं के साथ चला जाऊँगा। आप चिन्ता न करें। बेटे की इतनी प्रबल इच्छाशक्ति को देखकर माँ ने उसे जाने की अनुमति दे दी। और उसके जाने की तैयारी करने लगी। माँ ने घर में कुछ पैसे बचाकर रखे थे। वे पैसे उन्होंने सत्यपाल की बनियान में अन्दर की तरफ जेब लगाकर इस तरह छिपा दिए कि कोई दूसरा व्यक्ति उन्हें ढूँढ न सके। और उसको समझाते हुए बोली- बेटा! इन रूपयों को समझदारी से खर्च करना, सदाचार का पालन करना, सदा सत्य बोलना। ये वचनामृत देकर अगले दिन व्यापारियों के समुह के साथ माँ ने उसको विदा कर दिया। जब वे सब बीहड़ जंगल से गुजर रहे थे तो जिस अनहोनी का डर व्यापारियों को था वही घट गई। अचानक बहुत सारे डाकुओं ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। और डाकुओं के सरदार ने आदेश देते हुए कहा कि- जिसके पास जो भी कुछ माल-मत्ता हो वह चुपचाप निकालकर मेरे सामने रख दे। वरना मैं तुम्हारे साथ जो करूँगा वो तुम जानते ही हो। यह सुनकर सभी व्यापारियों ने तो साफ झूठ बोल दिया किहमारे पास तो कुछ भी नहीं है। लेकिन, सत्यपाल बोला- नहीं, मेरे पास
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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