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शिक्षाप्रद कहानिया होती और सुनो, गलत है तो गलत सही मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मेरा समय खराब मत करो और भी कोई आएगा मुझे उसे भी लूटना है, शाम तक बहुत सारा माल एकत्रित करना है इसलिए तुम जल्दी करो वरना, मुझे गुस्सा आ गया तो देख लेना मैं क्या करूँगा, शायद तुम्हें इसका अन्दाजा भी नहीं है।
यह सुनकर नारद जी बोले- अच्छा भाई! तुम गुस्सा मत करो मैं जानता हूँ तुम्हारा गुस्सा बहुत ही खतरनाक है। लेकिन, मैं हाथ जोड़कर एक विनती करना चाहता हूँ कि तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर और दे दो फिर मैं तुमसे कुछ नहीं पूछूगा।
कुछ देर सोचकर रत्नाकर बोला- अच्छा ठीक है, लेकिन ये ध्यान रखना कि समय अधिक नहीं लगना चाहिए। नारद जी ने तुरन्त पूछा- तुम्हें यह तो पता है कि ये सब जो तुम कर रहे हो वह गलत काम है और गलत काम की सजा भी एक न एक दिन अवश्य ही मिलती है। मुझे बस तुमसे यह पूछना है कि- तुम जिन परिवार वालों के लिए ये सब करते हो भगवान् न करे कल को तुम्हें अगर सजा मिल ही जाए तो क्या वे सब भी तुम्हारी इस सजा के भागीदार होंगे कि नहीं? क्या वह सजा तुम्हें अकेले ही भोगनी, पड़ेगी या थोड़ी बहुत वे भी भोगेंगे।
यह सुनकर रत्नाकर बोला- ये सब तो मैंने कभी सोचा ही नहीं।
नारद जी बोले- तो ऐसा करो तुम उनसे पूछ कर आओ। फिर मैं तुम्हें ये सारे गहने-वस्त्रादि दे दूगाँ।
इतना सुनते ही रत्नाकर बोला- आप मुझे मूर्ख समझते हो क्या? बहुत अच्छी योजना बनाई आपने मैं पूछने जाऊँ और आप यहाँ से नो-दो ग्यारह हो जाओ।
यह सुनकर नारद जी बोले- नहीं-नहीं ऐसा नहीं है। मैं कहीं नहीं जाऊँगा। और हाँ अगर तुम्हें मेरा यकीन नहीं है तो ये लो रस्सी और मुझे सामने वाले वृक्ष से कसकर बाँध दो।