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शिक्षाप्रद कहानिया
213 मुझे तो पहले ही पता था कि तुम नहीं चलने वाले। व्यर्थ में ही इतना समय बर्बाद कर दिया।'
सुअर बोला- 'सुनो, मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ। लेकिन आप मुझे यह बताइए कि ये जो आप मुझे ले जा रहे हैं न स्वर्ग-वर्ग में क्या वहाँ पर यह व्यवस्था है जिसमें मैं लोट-पोट हो रहा हूँ।'
__भगवान् बोले- 'वहाँ पर स्वीमिंग पुल है, नहाने के लिए सुगंधित फौवारे लगे हुए हैं। एक से एक बढ़िया शैम्पू है। रंग-बिरंगे नहाने के हमाम, लिरिल, डब, लक्स, पतञ्जलि के नीम, चंदन, एलोविरा आदि साबुन है। लेकिन यह गंदगी व कीचड़ वहाँ नहीं है, अब बोलो जल्दी चलना है कि नहीं।'
___ इतना सुनते ही सुअर बोला- 'तब तो आपका स्वर्ग आपको मुबारक, मुझे नहीं जाना वहाँ। मैं तो यहीं मस्त हूँ।'
मित्रों! यह वास्तविक सत्य है कि हरेक प्राणी को अपने स्वभाव में ही आनन्द आता है। लेकिन, हमें अपने वास्तविक स्वभाव को समझना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि जो हमारा स्वभाव है ही नहीं और हमने जबरदस्ती उसे अपना स्वभाव बना लिया हो, ओढ़ लिया हो, जिससे हमारा मूल स्वभाव ढक गया हो। और यह बहुत ही दु:खदायी
और भयावह स्थिति हो जाती है। एक शराब पीने वाले व्यक्ति को शराब पीने में ही मजा आता है और वह कहने लगता है कि यह तो मेरा स्वभाव है, लेकिन अगर वह गहराई से चिंतन करे तो उसे स्पष्ट मालूम हो जाएगा कि यह उसका मूल स्वभाव नहीं है, बल्कि ओढ़ा हुआ स्वभाव है जिसे छोड़ा जा सकता है। कहा भी जाता है कि
"वत्थु सहाओ धम्मो।' वस्तु का स्वभाव धर्म है। 'अत्ता चेव अहिंसा॥' आत्मा का मूल स्वभाव तो अहिंसा ही है।
१००. मनुष्य की अद्भुत श्रेणी
एक दिन प्रभात वेला में परमहंस देव अपनी शिष्य मंडली के साथ समुद्र के किनारे पर टहल रहे थे। तभी उनकी दृष्टि कुछ मछुआरों पर पड़ी। जो समुद्र में जाल डालकर मछलियाँ पकड़ रहे थे। टहलते-टहलते परमहंस देव एक मछुआरे के पास रुक गए और अपने शिष्यों से कहने