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शिक्षाप्रद कहानिया
211 का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने तुरन्त विमान चालक को आदेश दे दिया कि विमान को नीचे उतारो! विमान चालक आना-कानी करते हुए बोला-'माताजी! यहाँ लैडिंग करना सम्भव नहीं हैं। खामखाह (बेकार) में कोई दुर्घटना हो जाएगी।'
___लेकिन, माता तो आखिर माता होती है। वह भला किसी भी प्राणी के बालक को कैसे दु:खी देख सकती है। शिव भगवान् अपने अंतर्ध्यान में मगन सब लीला देख रहे थे। माता पार्वती ने तुरंत उन्हें झकझोरते हुए कहा- आप तो अन्तर्यामी हैं। सब देख रहे होंगे। पृथ्वी का एक प्राणी बड़े ही संकट में है, हमें तुरंत उसकी सहायता करनी चाहिए। अतः तुरंत इस चालक को आदेश दीजिए कि यह विमान को नीचे उतारे।
शिव भगवान् ने मन्द-मन्द मुस्कराते हुए कहा- 'आप व्यर्थ में चिन्तित हो रहीं हैं। वह प्राणी कष्ट में नहीं है। बल्कि, वह तो अपनी स्वाभाविक रुचि के अनुसार आनन्द कर रहा है। उसे उस कार्य में बड़ी सुखानुभूति हो रही है। हम बेकार में ही उसकी सुखानुभूति में बाधक बनेंगे। अतः आप उसकी चिंता छोड़िए।'
लेकिन, माता कहाँ मानने वाली थीं। वे अपनी दयालु प्रवृत्ति के साथ-साथ हठी भी थीं। जो कि स्त्रियों के स्वभाव में पुरुषों से कुछ अधिक होती है। अड़ गईं वे अपनी बात पर। नारी-हठ के आगे बड़े-बड़े योद्धा परास्त हो जाते हैं। भगवान् शिव ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया। लेकिन, वे नहीं मानी और कहने लगी अगर, आपने मेरी बात नहीं मानी तो मैं इसी समय अपने प्राणों का त्याग कर दूँगी। बस, फिर क्या था। तुरंत आपातकालीन लैंडिग करवानी पड़ी भगवान् शिव को। कराते भी क्यों नहीं पत्नी की जिद जो थी। और जैसे ही भगवान् शिव विमान से नीचे उतरे माता पार्वती बोली- 'एक काम करिए इसे इस कीचड़ से निकालिए और अपने साथ ही ले चलिए। यह वहाँ स्वर्गलोक की शादी देखेगा, अच्छे-अच्छे पकवान खाएगा, अप्सराओं का डांस देखेगा तो इसे बड़ा मजा आएगा।
भगवान् शिव मन ही मन कह रहे थे मैं जानता हूँ कि इसे कहाँ मजा आएगा। व्यर्थ ही हमारा समय खराब होगा और कुछ नहीं। लेकिन, क्या कर सकते थे। मजबूर थे बेचारे भगवान् अतः वे गए सुअर के पास