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________________ शिक्षाप्रद कहानियां 183 देकर खुशी-खुशी विदा किया। तत्पश्चात् वह मन ही मन सोचने लगा कि इन तीनों को सबक सिखाना चाहिए। ताकि ये दोबारा किसी गरीब का मजाक न उड़ा सके। और मन ही मन एक योजना बना ली। अगले दिन पहलवान ने अपने तीनो पड़ोसियों को भोजन के लिए निमंत्रण-पत्र भेजा, निमंत्रण-पत्र प्राप्त कर तीनों अति प्रसन्न हो गए और यथा समय पहुँच गए पहलवान के घर। पहलवान ने उन्हें स्नेहपूर्वक आसन ग्रहण करने को कहा। जैसे ही वे तीनों आसन पर विराजमान हुए उनके सामने परोसी हुई थालियाँ आ गई, थालियाँ थालपोशों ( रूमालों) से ढकी हुई थी सर्वप्रथम कवि महाशय ने थाली से थालपोश हटाया। वे यह देखकर चकित हो गए कि थाली में न खीर थी, न लड्डू थे, न सब्जी थी, न रायता था, न पूड़ी थी, न पुलाव, न अचार, न चटनी । अपितु थाली में रखी थी उन्हीं की कविताओं की एक किताब । यह देखकर कवि महाशय के जैसे प्राण ही उड़ गए हों। इसका एक कारण यह भी था कि निमंत्रण के चक्कर में श्रीमान् ने सुबह से ही कुछ नहीं खाया था। अतः पेट में चूहे कबड्डी खेल रहे थे। इसी प्रकार वैद्य जी की थाली में परोसी गई थी - दवाई की गोलियाँ, कुनेन का घोल और कुछ अन्य दवाइयाँ, और चित्रकार महानुभाव की थाली में परोसे गए थ आलीशान चित्र ही चित्र। तीनों के पेट में चूहे धमाचौकड़ी कर रहे थे, पर खाएँ तो क्या खाएँ। तीनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और खिसयानी हँसी हँसकर बोले- ‘ही-ही-ही-ही! पहलवान साहब! बहुत हँसी-मजाक हो गया। अब कुछ खाना-वाना लाइए । ' पहलवान तो जैसे इसी अवसर की तलाश में था। वह बोला'हे कविहृदय! कल मैंने देखा था कि आप एक भूखे आदमी को रोटी के बदले कविता खिला रहे थे। अब आप भी कविता खाकर भूख क्यों नहीं मिटा लेते? क्या उस व्यक्ति की भूख अलग थी और आपकी भूख अलग है?'
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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