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शिक्षाप्रद कहानिया
151 इस प्रकार महात्माजी ने क्रमशः उस श्रेष्ठी पुत्र के सभी रिश्तेदारों से पानी पीने को कहा लेकिन कोई भी तैयार नहीं हुआ। बल्कि, वे सब अब महात्माजी से ही कहने लगे कि- महात्माजी! क्यों न इस पानी को आप ही पी लें। आपके तो आगे-पीछे कोई रोने-धोने वाला है नहीं, न ही आपके पास कोई जमीन-जायदाद ही है। वैसे भी आप हमेशा प्रवचनों में कहा ही करते हैं कि परोपकार सबसे बड़ा धर्म है। इसलिए आप ही यह परोपकार का काम कर दें, आपको सद्गति मिलेगी। हम हर साल आपकी मृत्यु के पश्चात् श्राद्ध और जन्म जयन्ती आदि समारोह करेंगे आप कोई चिन्ता मत करना।
___ महात्माजी ने वह पानी पी लिया तथा श्रेष्ठी पुत्र को उठाते हुए बोले- क्यों पुत्र! अब मालूम पड़ गया कि कौन किससे कितना प्रेम करता है। श्रेष्ठी पुत्र बोला- हाँ महात्माजी! आज आपकी बात मेरी समझ में आ गयी मैंने संसार की असारता को आज जान लिया। आप ठीक ही कहा करते थे कि- कोई किसी का नहीं है। सभी संबंध स्वार्थपरक ही हैं। इसी संबंध में कबीरदास जी का निम्न पद्य चिन्तनीय है
मन फूला-फूला फिरे जगत् में किसका कैसा नाता रे। पेट पकड़ कर माता रोवे, बाँह पकड़ कर भाई॥ लपट-झपट कर तिरिया रोवे, हंस अकेला जाई।मन॥ जब तक जीवे माता रोवे, बहन रोवे दस मासा।। तेरह दिन तक तिरिया रोवे, फेर किए घर बासा।।मन॥
६६. शुभस्य शीघ्रम् अशुभस्य कालहरणम्
पुराने समय की बात है। राजस्थान में एक बादशाह था। कर्मोदय से उसे कुष्ठ रोग हो गया। वह बहुत परेशान था। उसी समय उनके राज्य में एक महात्मा का आगमन हुआ। किसी ने बादशाह को बतलाया कि महात्मा बहुत ही पहुँचे हुए संत हैं, क्यों न आप उनसे इस रोग का उपचार पूछ लो? बादशाह को बात समझ में आ गई और वह तुरन्त महात्मा के पास पहुँच गया। महात्मा ने सारी बात सुनकर बादशाह को