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________________ 141 शिक्षाप्रद कहानिया सिर के नीचे दबाया और लेट गये। उसी समय वहाँ से एक छोटी-सी कन्या अपनी पीठ पर एक छोटे से बालक को लिए हुए निकली। वह भी खूब पसीने से भीगी हुई और थकी हुई लग रही थी। लेकिन फिर भी वह उस दुर्गम पहाड़ी मार्ग पर आगे बढ़ती जा रही थी। साधु यह देखकर बड़ा आश्चर्यचकित हुआ। उन्होंने सहानुभूति प्रकट करते हुए बड़े ही मधुर शब्दों में कन्या से पूछा- 'बेटी, तुम तो बहुत ही समझदार और बहादुर हो। इस पहाड़ी मार्ग पर इतना बोझ पीठ पर लादकर आगे बढ़ती जा रही हो। तुम्हें थकान नहीं होती क्या?' कन्या ने बड़े ही अनमने ढ़ग से साधु को देखा और बोली'स्वामी जी, बोझ तो आपने अपने सिर के नीचे दबा रखा है। यह तो मेरा छोटा भाई है, कोई बोझ नहीं।' सत्य ही तो है। वास्तविक बोझ तो वही होता है जो हमारे मन-मस्तिष्क पर सवार होता है। सच्चे प्रेम और कर्तव्य के भाव के साथ कोई बोझ भी बोझ नहीं प्रतीत होता। वर्ना, छोटी-छोटी चीजें भी हमारे लिए अक्सर बहुत बोझिल हो जाती है। ६१. आत्मान्वेषण कुछ समय पहले की बात है। एक जौहरी रेल में यात्रा कर रहे थे। उनके पास एक बहुत कीमती रत्न था। उसी रेल के डिब्बे में एक प्रसिद्ध ठग भी यात्रा कर रहा था। किसी प्रकार उस ठग को ज्ञात हो गया कि जौहरी के पास कीमती रत्न है और मन ही मन में उस रत्न को ठगने का उपाय सोचने लगा। जौहरी भी बहुत समझदार था। क्योंकि उनको तो व्यापार के लिए हर तीसरे दिन यात्रा करनी पड़ती थी। ठग मन ही मन सोच रहा था कि पता नहीं जौहरी ने रत्न कहाँ छिपाकर रखा होगा, तभी वह देखता है कि जौहरी तो सो गया है। अब उसने सोचा कि मैं आराम से रत्न को ढूँढ लूँगा। और वह इधर-उधर हर स्थान पर ढूँढने लगा। ढूँढते-ढूँढते
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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