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शिक्षाप्रद कहानियां
विहाय पौरुषं यो हि, दैवमेवावलम्बते। प्रासादसिंहवत्तस्य, मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः॥
जो व्यक्ति पुरुषार्थ को छोड़कर केवल भाग्य के भरोसे बैठा रहता है। वह ऐसे होता है जैसे महल के ऊपर बना हुआ सिंह जिस पर अनेक कौवे आकर विष्ठा करते रहते हैं, लेकिन वह उन्हें भगा नहीं
सकता।
यह सब सुनकर लक्ष्मी जी ने पुनः उन सबको पहले जैसा बना दिया। और सभी मेहनत करने लगे तथा सुखपूर्वक रहने लगे। वैसे तो इस कहानी से हमें कई शिक्षाएं मिलती हैं लेकिन उसमें दो प्रमुख हैं
1. कभी भी हमें अधिक लोभ नहीं करना चाहिए।
2. किसी भी काम में 'अति' (बहुत अधिक) नहीं करनी चाहिए। चाहे वो खाना, पीना, चलना, टी.वी देखना, इण्टरनेट पर बैठना, फिल्म देखना, पढ़ना, लिखना इत्यादि चाहे कुछ भी हो।
५१. सच्चा भक्त कैसा हो?
उत्तर भारत के राजस्थान प्रांत के किसी गाँव में एक दिन प्रवचन सभा चल रही थी। प्रवचन के पश्चात् एक जिज्ञासु ने प्रवचनकार महात्मा से पूछा, 'हे महात्मन्! कृपया आप मुझे यह बतलाएं कि भगवान् का सच्चा भक्त कौन और कैसा होता है?' यह सुनकर महात्मा बोले, 'सुनो, मैं तुम्हें अपने पड़ोसी का एक दृष्टान्त सुनाता हूँ। जिसमें तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान निहित है।
जिनदत्त नामक एक धनी सेठ मेरा पड़ोसी था। वह अपने सार्थवाहों (साथी व्यापारियों) के साथ लाखों का माल खरीदने व बेचने विदेश जाया करता था। एक बार जब वे विदेश जा रहे थे तो रास्ते में लुटेरों ने उसका तथा उसके साथी का सारा माल-मत्ता लूट लिया। मुझे जब इस घटना का पता चला तो मैंने सोचा पड़ोसी होने के नाते मुझे