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शिक्षाप्रद कहानिया
123 करे-कराए अधिक धन थोड़े ही दे देंगी। और इस विचार-मंथन के उपरान्त वह बोला- ठीक है देवी जी, ये तो अच्छी ही बात है कि सभी सम्पन्न हो जाएंगे।
इतना सुनते ही लक्ष्मी जी बोलीं- तथास्तु! बस फिर क्या था? भर गया सेठ का घर धन-दौलत से। पैर रखने तक को जगह नहीं घर में। जहाँ देखो वहीं धन-दौलत। सेठ की तो बाछे खिल गई और वह अत्यन्त खुश हो गया। अब उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। कुछ देर बाद जब उसने अपना होश संभाला तो सोचने लगा कि अब इस दौलत को सम्भालकर पैकिंग-सैकिंग करके तरीके से रखा जाए। अब धन इतना अधिक था कि उसकी पैकिंग-सैकिंग वह अकेला तो कर नहीं सकता था। इस काम के लिए उसे मजदूर चाहिए थे। अतः वह घर से बाहर मजदूर लेने गया।
लेकिन यह क्या? जैसे ही सेठ ने मजदूरों से चलने को कहा वे बोले- ओ सेठ जी! अब हमें तुम्हारी मजदूरी की कोई आवश्यकता नहीं है अब हमारे घरों में भी धन के ढेर लगे हुए हैं तुम ही हमारे यहाँ मजदूरी कर दो।
इतने में सेठ को भूख लगी। तो उसने सोचा इतनी जल्दी घर में तो रोटी बनेगी नहीं। क्यों न बाहर से ही कुछ लेकर खा लिया जाए?
और वह बढ़ गया एक रेस्टोरेंट की ओर। वहाँ जाकर वह बोला- मुझे भोजन दीजिए। लेकिन, यहाँ भी वही स्थिति रेस्टोरेंट का मालिक बोलाअब हम भोजन-वोजन नहीं बनाते। जिस चीज के लिए हम सब यह काम करते थे, उसके तो अब हमारे यहाँ ढेर लगे पड़े हैं अब तुम चाहो तो ये भोजन-वोजन बनाने का काम कर सकते हो। हमें भी भोजन मिल जाएगा।
यह सब देख-सुनकर सेठ ने सोचा चलो, भोजन न सही दूधिए से दूध लेकर पी लिया जाए। और वह चल दिया दूधिया की ओर। लेकिन, जैसे ही वह दूधिया के पास पहुँचा तो उसने देखा दूधिया धन