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________________ शिक्षाप्रद कहानिया 115 इस कहानी से वैसे तो हमें कई शिक्षाएं मिलती हैं, लेकिन मैं समझता हूँ इसमें दो शिक्षाएँ प्रमुख हैं 1. हम सबको मित्र बहुत सोच-समझकर बनाना चाहिए। क्योंकि जीवन में मित्र ही एक ऐसा व्यक्ति होता है जिससे हम हर तरह की बातें चाहे सुख-दुःख की हों, चाहे घर-परिवार की हों? मन खोलकर करते हैं। 2. हमें अपने बड़े-बुजुर्गों की बातों का हमेशा सम्मान करना चाहिए। इस सन्दर्भ में कहा जाता है कि अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥ ४९. परोपकार का फल आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन्, को न जीवति मानवः। परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति॥ अर्थात् इस संसार में अपने स्वार्थ (मतलब) के लिए कौन नहीं जीता, लेकिन जो दूसरों की भलाई के लिए जीता है, वास्तव में जीना उसी का सफल है। उक्त श्लोक का तात्पर्य सीधा-सीधा है कि हम सबको परोपकार के कार्य करने चाहिए। इसी सन्दर्भ में मैंने एक कहानी पढ़ी थी, यहाँ मैं उसी को लिखने का प्रयत्न कर रहा हूँ। दक्षिण भारत के किसी गाँव में एक नि:सन्तान किसान दम्पती रहते थे। एक बार किसान बहुत बीमार हो गया। उसकी आयु भी काफी हो गई थी अतः अब उसके शरीर में इतनी ताकत नहीं थी कि वह बीमारी से संघर्ष कर सके। उसने यह अनुमान लगा लिया था कि अब उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है। वह सोचने लगा मेरे मरने के बाद मेरी पत्नी का क्या होगा ? यह बेचारी भी तो अब वृद्ध हो गयी है। ये
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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