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शिक्षाप्रद कहानिया
113 मित्र बना लिए हैं। और फिर उन दोनों ने मिलकर खुशी-खुशी वहाँ अपना घोंसला बनाया और उसमें रहने लगे। कुछ समय उपरान्त कबूतरी का प्रसव काल आ गया उसने बहुत ही सुन्दर दो अण्डे दिए। कुछ समय पश्चात उन अण्डों में से चूजें भी निकल आए। और वे सब बड़े मजे से सुखपूर्वक वहाँ अपना समय व्यतीत करने लगे।
अचानक एक दिन कुछ बहेलिए घूमते-घूमते वहाँ आ पहुँचे। रात्रि का समय था। गहन अन्धेरा हो गया था। अत: उन लोगों ने परस्पर विचार किया कि क्यों न रात्रि में यहीं रुका जाए, और अन्त में उन्होंने रात्रि वहीं बिताने का निश्चय किया। अन्धेरा दूर करने के लिए संयोगवश उन्होंने जमीन पर उसी जगह आग सुलगा दी जहाँ कबूतर का घोंसला था।
आग सुलगने के कारण अत्यन्त कडुआ धुआँ घोंसले में पहुँचा तो कबूतर के बच्चे तिलमिला उठे और लगे शोर मचाने। उनका कोलाहल सुनकर एक बहेलिया बोला- 'लगता है, ऊपर कोई घोंसला है और जरूर उसमें किसी पक्षी के बच्चे हैं।'
तुरन्त दूसरा बोला- 'देख क्या रहे हो, चढ़ो ऊपर और सब बच्चों
को उतार लाओ नीचे।' तीसरा बोला- 'बहुत अच्छा! मुझे जोरों की भूख भी लगी
है। हम उनको आग मे भूनकर खाएंगे।' चौथा बोला- 'अच्छा हो कि बच्चे बड़े-बड़े हो ताकि हम
सब की भूख शान्त हो।' ऊपर बैठी कबूतरी यह सारा वार्तालाप सुन रही थी। उसने तुरन्त कबूतर को सचेत करते हुए कहा- 'सुनते हो! ये लोग हमारे बच्चों को पकड़कर खाना चाहते हैं। जब तक ये दुष्ट लोग ऊपर चढ़कर बच्चों को पकड़े उससे पहले हमें अपने जान से प्यारे बच्चों को इनसे बचाने का उपाय कर लेना चाहिए। जरा भी देर हुई तो एक भी बच्चा नहीं बचेगा।