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________________ 105 शिक्षाप्रद कहानिया तीसरा बोला- हाँ, इसके दो साथी भी थे। वे चोरी का सारा माल लेकर नो-दो-ग्यारह हो गए। मैंने अपनी आँखों से उन्हें भागते हुए देखा भीड़ में बहुत लोग खड़े थे, लेकिन किसी ने भी यह सोचने का प्रयत्न नहीं किया कि वास्तव में यह बालक चोर है या नहीं। अपितु सभी ने एक स्वर में कह दिया कि यही बालक चोर है। क्योंकि पब्लिक की तो आदत ही होती है- भेड़ चाल की। जैसे एक भेड़ को देखकर दूसरी, फिर तीसरी, फिर चौथी और क्रमशः सारी उसी का अनुकरण करने लगती हैं। ठीक वैसे ही। अतः अन्त में सर्वसम्मति से निर्णय हुआ कि इस बालक को पुलिस के हवाले कर दिया जाए। पुलिस थाने मे सूचना दी गई। पुलिस आई और बालक को पकड़कर ले गई। यहाँ एक आश्चर्यचकित करने वाली बात और भी थी कि वह बालक भी न तो कुछ बोला। बस अवाक् खड़ा सारा खेल देखता रहा। जैसे सच में ही वहाँ कोई खेल चल रहा हो। थाने जाने के बाद उस बालक पर एफ.आई.आर. दर्ज हुई। मामला कोर्ट में पहुँचा, मुकदमा चला और अन्ततोगत्वा उस बालक को पाँच वर्ष की कैद की सजा हो गई। एक दिन अचानक न जाने उस बालक के दिमाग में क्या आया कि वह जेल से भाग गया। उसे बहुत जोरों की भूख लगी थी और वह भागते-भागते एक झोपड़ी में पहुँच गया। और अन्दर जाते ही उसने कहा- मुझे कुछ खाने को दो। मैं बहुत भूखा हूँ। संयोगवश उस झोपड़ी में एक बहुत ही गरीब आदमी रहता था। उसने उत्तर दिया- बेटा! मैं तुम्हें खाने को क्या दे सकता हूँ। हम तो स्वयं भूखे हैं। मेरा बेटा दवा न मिलने के कारण मरणासन्न है। बताओ मैं तुम्हें क्या दे सकता हूँ। यह सुनकर बालक का मन द्रवित हो उठा और वह अपनी भूख-प्यास सब भूल गया। और सोचने लगा कि किस प्रकार इस व्यक्ति की सहायता की जाए? क्योंकि परोपकारी व्यक्ति का स्वभाव ही कुछ
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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