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शिक्षाप्रद कहानिया
अब तक दोनों साँप ऊपर वाले विद्वान् के काफी नजदीक पहुँच चुके थे। नीचे खड़े विद्वानों ने जब यह देखा तो वे मारे डर के इधर-उधर भागने लगे। संयोगवश उसी समय वहाँ पर एक जगंल में काम करने वाला माली आ गया। उसने विद्वानों की वेशभूषा आदि से तुरन्त अनुमान लगा लिया कि अवश्य ही ये विद्वान् पण्डित हैं। और किसी बात से डरे हुए हैं। उसने उनसे पूछा- पण्डित जी! कुशल मंगल तो है?
घबराते हुए सभी ने एक स्वर में कहा- अरे! कुशलमंगल कहाँ! हम बहुत भारी मुसीबत में फंसे हुए हैं। और उन्होंने सारी बात माली को बता दी।
यह सुनकर माली बोला- तो आप लोग भाग क्यों रहे हैं? अपने साथी को बचाने का कोई उपाय क्यों नहीं करते? अगर आपको डर लगता है तो आओ मेरे साथ।
इतना कहकर माली ने तुरन्त आपना ओढ़ा हुआ कम्बल उतारा और कम्बल का एक कोना स्वयं पकड़ा और बाकी के तीन कोने तीन विद्वानों को पकड़ा दिए और कहा कि कस के पकड़ना, छूटना नहीं चाहिए।
जब कम्बल छत की तरह तन गया तब माली ने ऊपर वाले विद्वान् को कहा- आप केवल कम्बल पर कूद जाएं। आपको चोट भी नहीं लगेगी और आप साँपों से भी बच जाएंगे। और उसने ऐसा ही किया। वह कम्बल पर कूद गया और उसके प्राण बच गए। इस प्रकार जो काम सारे विद्वान् नहीं कर सके वही काम माली के अनुभव ने कर दिखाया। इसीलिए कहा जाता है कि ज्ञान से भी अधिक महत्त्व अनुभव होता है।
और यह अनुभव हमारे बड़े-बुजुर्गों के पास खूब होता है। जिसे हम सब को लेना चाहिए।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किताबी ज्ञान के साथ-साथ हमें व्यवहारिक ज्ञान भी रखना चाहिए। क्योंकि, व्यवहारिक ज्ञान के बिना हमारी जीवन रूपी गाड़ी चलनी सम्भव नहीं है। और वह