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राजुल
| नेमिनाथ मुड़कर नहीं देखते। चलते-चलते कहते हैं- नेमिनाथ निर्जन पथ पर बढ़े चले जाते हैं।
मृत्यु आये इसके पूर्व मुक्ति
प्राप्त करना चाहता
| नेमिनाथ गिरनार पर्वत के शिखर पर पहुँच कर समस्त्र अपने हाथों से अपने केश उखाड़ते हैं। वस्त्र आभूषण उतारते हैं और दिगम्बर वेष में पद्मासन मुद्रा में एक शिलाखण्ड पर बैठ जाते हैं
सिद्धम् नमः
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मैं देह नहीं आत्मा हूँ । संसार की किसी भी वस्तु से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं।