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________________ नर्मदा ने अपने आप को असहाय समझ कर रोना धोना आरम्भ || नर्मदा ने अनेक प्रकार से विलाप किया। उसके करूण क्रन्दन से किया-वह विलाप करती हुई कहने लगी पशु पक्षी भी द्रवीभूत हुए, पर क्रूर हृदया हरिणी न पसीजी। वह ह्यय तात! आपने मेरा शून्य द्वीप से उद्धार किया मैंने समझा कि मेरी | ||उसे वैश्या बनाने के लिए बाध्य करती रही। विपत्तिका अन्त हो गया किन्तु अभी भी मेरी विपत्ति शेष है। इस नरक से मेरा ||सुन्दरी मानुषी का जन्म दुर्लभ है। तारूण्य क्षण भंगुर है विशिष्ट किस प्रकार उद्धार हेगा? ये रूप का सौदा करने वाली बारांगनाएं शील का | सुख का अनुभव करना ही इसका फल है। वह समस्त वेश्याओं को प्राप्त होता है। कुल वधुओं को नहीं। विशिष्ट प्रकार का महत्त्व क्या समझें। भोजन प्रतिदिन खाने से वह जिह्वा को सुख नहीं देता । प्रति दिन नया भोजन चाहिए। इसी प्रकार नये-नये पुरुष नये-नये भोग सुख को प्रदान करते हैं। JO वेश्याएं स्वच्छन्द विचरण करती है, अमृत के समान मद्यपान करती है, तुम अत्यन्त नीच कुक्कुरी हो । निर्लज्ज होने के कारण तुम्हें वेश्यावस्था साक्षात् स्वर्ग की भांति मनोहर है। जो रमणी इस अवस्था इस प्रकार की बातें करते हुए शर्म नहीं आती। भले घर की का अनुभव एक बार कर लेती है, वह फिर इस सुख का त्याग नहीं बहूबेटियों को फँसाकर लाना और उनसे वेश्यावृत्ति कराना कर सकती। तुम रति के तुल्य सुन्दरी हो । राजा महाराजा, सेठ-कहाँ तक उचित है? तुम्हें इन नीच कर्मों का फल अवश्य साहूकार सभी तुम्हारे चरणों के दास बन जायेंगे। तुम्हारे आधीन प्राप्त होगा। याद रखो, तुम्हें अपने कर्मों के फल स्वरूप होकर वे तुम्हें अपार धन देंगे। इस मोहल्ले की सभी वेश्याएं आधा-इसी जीवन में नरक वेदना भोगनी पड़ेगी। तुम्हारा धन मुझे देती है, तुम मुझे विशेष प्रिय हो, अतःमैं तुम से केवल चतुर्थांश शरीर गल जायेगा और तुम्हें अपने पाप का प्रायश्चित करना, ही लिया करूँगी। होगा। are प्रेय की भभूत
SR No.033234
Book TitlePrey Ki Bhabhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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