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________________ जो आपने वीतरागी देव की उपासना के सम्बन्ध में तर्क उपस्थित किया एक दिन नर्मदा सुंदरी अपने भवन की तीसरी मंजिल पर है, वह निरर्थक है। वीतरागी किसी को कुछ देता लेता नहीं, पर उनकी बैठी हुई पान चबा रही थी। उसने पान की पीक को नीचे के भक्ति करने वाला अपनी भावना के तारतम्य के अनुसार स्वयं ही शुभाशुभ |चौराहे पर थूका । पानकी यह पीक एक ईर्यासमिति से गमन फल प्राप्त कर लेता है। कर्ता-भोक्ता स्वयं यह आत्मा है,यह जिस प्रकार करते हए साध के ऊपर पड़ गई। साधु का शरीर दूषित हो के कर्म करता है, वैसा ही आसव होता है ओर तदनुसार बन्ध । एक अन्य गया और उसे क्रोध आ गया उसने अभिशाप दिया कि......... बात यह भी हैं कि भक्ति करने का उद्देश्य कुछ प्राप्त करना नहीं है, इसका लक्ष्य तो आत्मशुद्धि की प्रेरणा प्राप्त करता है। हम जिस प्रकार के देवकी जिसने मेरे भक्ति करेंगे। उसी प्रकार की हमारी परिणति हो जायेगी। वीतरागता ही मुक्ति का साधन है और इसी वीतरागता को प्राप्त करना हमारा उद्देश्य है। ऊपर यह गंदी| कषाय को घटाने या कषाय को क्षीण करने पर ही वीतरागता प्राप्त होती वस्तु गिरायी है है। अत: वीतरागी की भक्ति ही उपादेय है।' वही इसी जन्म में नाना प्रकार की विपत्तियों को प्राप्त होगा। इस प्रकार नर्मदा सुंदरी से जीवानोत्थान की बातें सुनकर स्वसुर ग्रह के सभी व्यक्ति संतुष्ट हुए और उसका कुलवधु की तरह सम्मान करने लगे। जब साधु की यह आवाज नर्मदा सुंदरी ने सुनी तो वह तत्काल प्रासुक जल लेकर नीचे आई और साधु का शरीर स्वच्छ किया। उनके चरणों में गिरकर प्रार्थना की वीतरागी प्रभो! मेरे अपराध को क्षमा कीजिए। मैंने आपका अपमान करने की दृष्टि से पान का रस नहीं गिराया था। यह मेरी अज्ञानता के कारण आपके ऊपर पड़ गया, अतः आप क्षमा कीजिए। जैन चित्रकथा
SR No.033234
Book TitlePrey Ki Bhabhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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