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________________ जब सीता राम के सामने | तुम महा निर्दयी हो, तुमने विद्वान होकर यह कह कर रूदन करने लगी तब सीता ने कहापहुंची, तब राम ने कहा- मूों की तरह मेरा अपमान किया तब राम बाल-मैं जानता हूँ आप आज्ञा करो सो ही प्रमाण मेरे आगे क्यों खडी है? सो कहां उचित है? मुझ गर्भवती को तुम्हारा निर्दोष शील है और जगत में दिव्यं है सो सब कर तुम परे जावो। मैं तुझे जिन दर्शन की अभिलाषा उपजाकर तुम निष्पाप अणुव्रत धारिणी के पृथ्वी का संदेह दूर करूं देखने का इच्छुक नहीं| कुटिलता पूर्वक यात्रा का नाम लेकर |मेरी आज्ञाकारिणी हो। तुम्हारी | महाविष कालकूट पीवू? हूँ तूं बहुत मास दशमुख विषम वन में डाली। यह कहां उचित भावना की शुद्धता मैं भली भांति अग्नि की विषम ज्वाला में के घर रही तझे अब मेरे । है? मेरा कमरण होता और कुगत्ति | जानता हूँ, परन्तु ये जगत के लोग प्रवेश करूं? आपकी घर रखना कहां उचित है? जाती इससे तुम्हें क्या सिद्ध होता? | कुटिल स्वभाव है। इन्होंने तुम्हारा [आता हो सोही कम NILEB जो तुम्हें तजनी ही थी तो आर्यिकाओं || अपवाद उठाया इनका संदेह के समीप छोड़ देते। तुमने करने में || मिटे वैसा करो। कोई कमी नही छोड़ी। अब प्रसन्न होकर आज्ञा दो क्या करूं? AAAAAA एक क्षण विचार कर राम बोले - अग्निकुण्ड में प्रवेश करो। बस यही प्रमाण। सब लोग भयसे व्याकुल होकर आंसू बहाने लगे। राम के आदेश से तीन सो हाथ कुण्ड खोद कर सूखी चन्दन की लकड़ी भरवायी गयी। अग्नि प्रज्वलित की गयी। धुंए का अन्धकार हो गया। सीता उठी और सिद्धों व तीर्थंकरों को नमस्कार बोली मनवचन और काया से सपने में भी राम बिना और पुरूष मैं नहीं जाना। जो मैं झूठ कहती हूँ तो ये अग्नि ज्वाला मुझे भस्म कर दे। RCMY जैन चित्रकथा
SR No.033226
Book TitleJanak Nandini Sita
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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