SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ये वचन सुन कर सीता बज्रपात कहने लगी- मुझे प्राण नाथ से मिलाओ warn wel 28 यह जगत दुर्निवार है। जगत ऐसा कहकर रथ सूं उतरी और पाषाण का मुख बंद नहीं किया जा भरी पृथ्वी पर अचेत होकर मुर्छा सकता। जिसके मुख में जो खाय पड़ी। वृतांतवक्र सीता को आवे, सो ही कहे। लोक चेष्टा रहित मुर्छित देखकर बहुत गडरिया प्रवाह है सो अपने दुःखी हुआ। हाय! यह भयानक हृदय में है गुणभूषण लौकिक वन अनेक हिंसक जीवों से भरा । वार्ता नहीं धरना हम स्त्री जन महाधीर, शूरवीर हो उनके जीने की है कभी कोई परिहास्य यश आशा नहीं तो ये कैसे जीवेगी? अप्रिय वचन कहा हो तो इसके प्राण बचना कठिन है । इस महासती माता को मैं अकेली वन में छोड़ कर जा रहा हूँ मेरे समान निर्दयी कौन होगा? क्षमा करना । 444444 की मारी जैसी पुनः संभलकर हे माता! नगरी दूर रही और राम का दर्शन दूर। 2. moditie तब आंखों में आंसू भरकर कहने लगीहे सेनापति! मेरे वचन राम से कहना-जैसे पिता पुत्र की रक्षा करे, वैसे ही आप प्रजा का पालन करना। आप राज्य से सम्यग्दर्शन को विशेष भला | जानना। जो अविनाशी सुख का दाता है। अभव्य जीव निन्दा करे तो भी हे पुरूषोत्तम सम्यग्दर्शन | कदापि मत छोड़ना। यह अत्यन्त दुर्लभ है। | जैसे हाथ में आया रत्न समुद्र में डाल दिया। तो फिर हाथ नही आयेगा। T जब मूर्छा से सचेत हुई तो महादुःख की भरी यूथभ्रष्ट मृगी की तरह विलाप करने लगी। हाय कमल नयन राम मेरी रक्षा करो मैं मन्दभागिनी पूर्व जन्म में अशुभकर्म किये जिसके फल से निर्जन वन में दुःख को प्राप्त हुई कोई युगल बिछोवा जिससे मुझे स्वामी का वियोग हुआ। मैं बलभद्र की पटराणी, स्वर्ग समान महल की निवासिनी अब पाप के उदय से निर्जन वन मे भटक रही हूँ । ma जनक नन्दनी सीता
SR No.033226
Book TitleJanak Nandini Sita
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy