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________________ यह उसके लज्जा रहित वचन सुनकर दोनो भाई परस्पर अवलोकन कर चुपचाप खड़े रहे। तब वह इनका चित्त निष्काम जान निश्वास नाख कर कहने लगी। जो तेरी इच्छा हो सो करो। वह क्रोधित होकर अपने पति आकाश मार्ग से चौदह हजार राजाओं को साथ ले के पास गयी- खरदूषण, दैत्यजाति दण्डक वन में आये, उनकी सेना के भयंकर शब्द विद्याधर अधिपति ने महाक्रोध कर सुन सीता डरने लगी, राम के पास चिपक गयी। तत्काल रावण को समाचार भेजा- तब श्रीराम ने कहा- प्रिय भय मत करो। जिनके हाथ सूर्य हास खड़ग आया वे सामान्य पुरुष नहीं है। जो विचार करना हो सो करो। जाऊं? HARI वह चली गयी- पीछे राम, लक्ष्मण सीता को बड़ा आश्चर्य हुआ। पण राक्षस सेना को देख श्रीराम ने धनुष | उसी समय पुष्पक विमान में बैठ कर रावण रावण ने अवलोकनी विद्या से सारा उठाया तब लक्ष्मण ने कहा आया। सम्बूक को मारने वाले पुरूष पर वृतान्त जानकर कपट पूर्वक सिंहनाद मेरे रहते आपको इतना परिश्रम क्रोधित हो रहा था। मार्ग में राम के समीप किया- उसने बार-बार राम, राम ... करना ठीक नहीं। आप राजपुत्री की महासती सीता को बैठे देख कर मोहित ये आवाज निकाली। रक्षा करें। मैं शत्रु का सामना करूंगा| हो गया। यह अद्भुत रूप, अनुपम भाई पर माह पड़ भाई पर भीड़ पड़ी जान श्रीराम ने कदाचित भीड़ पड़ेगी तो मैं सिंहनाद | महासुन्दर नवयौवन- पहले इसे ही हर जानकी को एक लता कुञ्ज में छिपा करूंगा। तब आप मेरी सहायता करना।। कर घर ले जाऊंगा। छिपकर ले जाने में|कर- जटायु को पास बिठाकर धनुष PROUP किसी को पता नहीं चलेगा। बाण लेकर लक्ष्मण की सहायता के लिए चले गये। ऐसा कह बख्तर पहर शस्त्र धार लक्ष्मण खरदूषण से युद्ध करने चला। जैन चित्रकथा 1
SR No.033226
Book TitleJanak Nandini Sita
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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