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________________ दोनों भाइयों ने निकट जाय सांप बिच्छु मुनियों के शरीर से हटाये- चरणारविंद की पूजी की भक्ति जैसे ही रात्रि हुई असुर भी मायाकारी जन मनियों के पैर धोकर मनोहर गंध से लिप्त किये। महारोग भयंकर शब्द करते हुए हाथों जो वन को सुगन्धित कर रहे थे एवं लक्ष्मण ने तोड़कर दिये ऐसे निकटवर्ती लताओं के में त्रिशूल लिए उपद्रव करने लगे-राम, फूलों से उनकी पूजा की और योगीश्वरों की भक्ति वंदना करने लगे। श्रीराम वीणा लेकर लक्ष्मण ने धनुष बाण से उन सबको बजाने लगे और दोनों भाई मधुर स्वर में गान करने लगे। भक्ति की प्रेरित सीता ऐसा |मार भगाया- मुनियों का उपसर्ग दूर हुआ। नृत्य करने लगी जैसा सुमेरू पर शची नृत्य करे। तदन्तर श्रीराम, सीता, लक्ष्मण दण्डक वन में नर्मदा नदी के तट तब श्रीराम ने सीता सहित सन्मुख जाय नमस्कार कर महाभक्ति युक्त पर पहुंचे। एक रमणीक वृक्ष की छाया में विश्राम किया। बहुत ही श्रद्धा सहित मुनियों को आहार दिया। आरणी भैंसों व गायों का दूध, मीठे आरोग्य युक्त पक्के फलों व फूलों के आहार बनाये, सीता ने वहां छुहारे, गिरी, दाख, नाना, प्रकार के वन के धान्य, मधुर, घी-मिष्ठान इत्यादि मनोहर वस्तु से विधि पूर्वक मुनियों को पारण कराया। जब रसोई के उपकरण, माटी के बासण बांसों के नाना प्रकार तत्काल बनाये। राम ने सीता सहित भक्ति कर आहार दिया तब पंचाश्चर्य हुए। उसी महास्वादिष्ट सुन्दर, सुगन्ध आहार, वन के धान सीता ने तैयार किये। समय एक गृध पक्षी वृक्ष पर बैठा उन्हे चाव से देख रहा था। भोजन के समय दोऊ वीर मुनि सुगुप्ति व गुप्ति नामके आहार के FLOTHO लिए आये। सो दूर से सीता ने देखे। अत्यंत हर्षित होकर पति से कहने लगी - हे प्रिय! हे पंडिते! सुन्दर मूर्ति! वे साधु कहां | हे नाथ! हे नरश्रेष्ठ! हैं? धन्य है भाग्य तुमने निग्रन्थ युगल देखे। देखिये, दिगम्बर कल्याण | जिनके दर्शन से जन्म-जन्म के पाप नष्ट हो रूप चारणयुगल आये हैं। जाते हैं- भक्तों का परम कल्याण होता है। PLRS जैन चित्रकथा
SR No.033226
Book TitleJanak Nandini Sita
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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