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इधर दूत ने आकर सम्राट भरत से सब समाचार कह सुनाये तब वे भी युद्ध के लिए सेना लेकर पोदनपुर जा पहुंचे। भाई-भाई का यह युद्ध किसी को अच्छा नहीं लगा। दोनो पक्ष के बुद्धिमान मंत्रियों ने दोनों को लड़ने से रोका, पर राज्य लिप्सा एवं अभिमान से भरे हुए उनके हृदयों में किसी के भी वचन स्थान नही पा सके । अन्त में दोनों ओर के मंत्रियों ने एक मत होकर सम्राट भरत एवं राजा बाहुबली से निवेदन किया। इस युद्ध में सेना का व्यर्थ संहार होगा इसलिए उत्तम है कि आप दोनों परस्पर द्वन्द युद्ध करें एवं सैनिक चुपचाप तटस्थ खड़े रहें । आप दोनों
सर्वप्रथम दृष्टि युद्ध, फिर जल युद्ध एवं अंत में मलयुद्ध करें इन तीनों युद्धों में जो हार जावेगा वही पराजित कहलायेगा।
मंत्रियों का सुझाव दोनो भाइयों को योग्य प्रतीत हुआ इसलिए उन्होंने अपनी -अपनी सेनाओं को युद्ध करने से रोक दिया।
सर्वप्रथम दृष्टियुद्ध करने के लिए दोनों भाइ युद्ध भूमि में उतरे। दृष्टि युद्ध का नियम यह था कि दोनों विजिगीषु एक-दूसरे की आंखों की ओर देखें, जिसके पलक पहले झप जावे वही पराजित कहलायेगा।
राजा बाहुबली का शरीर सम्राट भरत से पच्चीस धनुष ऊंचा था। दृष्टि युद्ध के समय सम्राट भरत को ऊपर की ओर देखना पड़ता था एवं राजा बाहुबली को नीचे की ओर । आंख मे वायु भरने से सम्राट भरत के पलक पहिले झप गये-विजय लक्ष्मी राजा बाहुबली को प्राप्त हुई।
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200025
TODGORZ CU
जैन चित्रकथा