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रुक्मिणीऔर उसकी बुआदासियों के साथ गीत गाती हुई पद्मवन की ओर चली, मार्ग में शिशुपाल के सैनिकों ने उन्हें रोका।
अरे तुमसब कहांजारही हो?) यहीं पवन में क्मिणी नेष्टक
-मनौती मना रखीथी।जिस दिन बसका विवाह होगा यह उपवन में कामदेव की पूजा करेगी। इसलिए यह उपवन में जारही है।
ठीक है. जाओ। परजल्दी लौटना।
शिशुपाल के सैनिकोंने रूक्मिणीको उपवन में
जाने की अनुमति दे दी। पद्मवनके समीप पहुंचने पर..... ।। बेटी,अब
अकेली हीजा। तेरी मनोकामना परी हो।
जैसी आपकी आज्ञा
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पड़ावन में श्रीकृष्णको न पाकर रुक्मिणी दुखी हो उठी,श्रीकृष्णा कामदेव की मूर्ति के पीछे छिपे हुए
हे कृष्ण, हेमुरारी मेरी पुकार सुनो और दर्शन
दो।
में उपस्थित हूं.देवी चिन्तात्यागो कुछ ही दूरी पर रथखड़ा है वहां मेरैबड़े भाई बलराम भी हैं। तुमचलकर स्थ पर बैठो। द्वारिकापुरीतुम्हारी प्रतीक्षा कर रही
है।
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रूक्मिणीको दुखी देख श्रीकृष्णसामने आष्ट