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प्रकाशकीय परम पूज्य अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु के जीवन चारित्र पर आधारित चित्रकथा 'अकाल की रेखाएँ' प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है।
इस कथा के अनुशीलन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आपत्तिकाल की विषम परिस्थिति में भी जिनागम समस्त परम्पराओं से समझौता आगे चलकर किस तरह एक विशाल विकृति के रूप में परिणमित हो जाता है।
इस चित्रकथा में जहाँ मुनिदशा के गरिमामय स्वरूप का दिग्दर्शन हुआ है, वही मुनिदशा में प्रारम्भ शिथिलाचार का बीज एक नये सम्प्रदाय के रूप में पल्लवित हो जाता है, इस बात का परिज्ञान भी हुआ है।
____ नन्हें-मुन्ने बालकों के लिए उपयोगी इस चित्रकथा के लेखन के लिए डॉ. योगेश जैन, अलीगंज के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए उनसे इस दिशा में अनवरत कार्य करने का हार्दिक अनुरोध करते है।
इस चित्रकथा के प्रकाशन में सहयोग हेतु श्री मनीषजी, गरिमा क्रिएशन, दिल्ली के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं।
यह सम्पूर्ण चित्रकथा मङ्गलायतन (मासिक पत्रिका) में प्रकाशित हो चुकी है। पाठकों की की माँग पर इसे पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है। सभी पाठकगण इसका भरपूर लाभलें - यही भावना है।
- पवन जैन
प्रथम संस्करण : 2000 प्रतियाँ विक्रय मूल्य: पन्द्रह रुपये मात्र टाइप सेटिंग : मङ्गलायतन लेजर ग्राफिक्स मुद्रक : Garima Creations, New Delhi