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अकाल की रेखाएँ | 10
| दीक्षा के बाद गोवर्द्धनाचार्य ने भद्रबाहु को द्वादशाङ्ग की शिक्षा दी, फलस्वरूप श्रावकों में उत्साह.... । आज मुनि भद्रबाहु के श्रुतज्ञान की पूर्णता हुई, अरे वाह ! देव लोग भी इस शुभ हमें उनका पूजन करना चाहिए।
प्रसङ्ग पर आ रहे हैं।
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कुछ काल बाद वृद्ध होने पर गोवर्द्धनाचार्य ने भद्रबाहु को अपने पद पर प्रतिष्ठित किया।
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और समाधि-साधना हेतु संघ का परित्याग कर दिया।
| नये आचार्य भद्रबाहु ने विशाल संघ के साथ | देश-देशान्तर में विहार किया।
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