________________ कुम्मापुत्तचरिअं 180-187 विसमिऊण निअट्टो दोहि अ समएहि केवले सेसे। पढमे निदं पयलं नामस्स इमाउ पयडीओ // 18 // / देवगइआणुपुची विउविसंघयणपढमवज्जाई / अन्नयरं संठाणं तित्थयराहारनामं च // 181 // चरमे नाणावरणं पंचविहं दसणं चउविगप्पं / पंचविहमंतराय खवइत्ता केवली होइ // 182 // इअ खवगसेणिपत्ता समणा चउरो वि केवली जाया। ते गंतूण जिणंते केवलिपॅरिसाइ आसीणा // 18 // तत्थुवविठ्ठो इंदो पुच्छइ जगदुत्तमं जिणाधीसं / सामिअ इमेहि तुब्भे न वंदिआ हेउणा केण // 184 // कहइ पहू एएसिं कुम्मापुताउ केवलं जायं / एएण कारणेणं एएहि न वंदिआ अम्हे // 185 // पुच्छइ पुणो वि इंदो कइआ एसो महव्वई भावी। पहुणाइह सत्तमदिणस्स तइअम्मि पहरम्मि // 186 // इअ कहिऊण निउत्तो जगदुत्तमजिणवरो दिणयरो व्व / तमतिमिराणि हरंतो विहरंतो महिअले जयइ // 187 // 1 टीकाग्रन्थेषु 'निगंठ' शद्वो ‘नियंठ' शद्बो वा दृश्यते / 2. ख ग ब दोहिं समएहिं; ट दोही समएहि. 3 क जिणंतं. 4 अ क ख घ ब. परिसाय आसीणा; ज ट परिसाए. 5 इयमार्या छ पुस्तके न दृश्यते. 6 ट महव्वए भावी. 7 क. ट. पहुणादिटुं.