________________ कुम्मापुत्परिवं 3-100 इअ मुणिय जिणुवएस सम्मत के वि के वि चारित्तं / 'भावेण देसबिरई पडिचना के वि कथपुण्णा // 163 // इत्यंतरे कमलाभमरद्रोणडुमजीवा जे पुरा गया मुक्के। ते चविय भरहखिचे वेयड्डे खेअरा जाया // 16 // चष्ठरो वि भुत्तभोगा चारणसमणंतिए गहिअचरणा। तत्थेव य संपत्ता जिणंदमभिवंदिअ निविष्ठा // 165 / / तं दट्टणं पुच्छइ चक्कधरो धम्मचक्किणं नाहं / भय केमी चारणसमणा सुमणा कओ पत्ता // 166 // तो जिणवरो पयंपइ नरिन्द निसुणेहि चारणा एए। वेअड्डभारहाओ समागया अम्ह नमणत्थं // 167 // घुच्छेइ चकवट्टी भयवं वेअड्डभरहवासम्मि / किं को वि अत्थि संपइ चक्की वा केवली वा वि // 168 // जंपइ जिणो न संपइ भरहे नाणी नरिंद चक्की वा। किं पुण कुम्मापुत्तो गिहवासे केवली अस्थि // 169 // चक्कधरो पडिपुच्छइ भयवं किं केवली घरे वसइ / कइह पहू निअअम्मापिउपडिबोहाय सो वसइ // 17 // 1 क च छ ब जिणिंद. 2 ब, ता जिण. 3 अ क ज त चक्ककट्टी य पुच्छइ, च, चकवट्टी पुच्छइ; ख ध ट, ते दळूणं पुच्छह चक्कधरो चक्किणं नाहं / 4 क ख ग घ त, जंपइ,