________________ 44 Siri Sirivalakala given in the Acharanga Sutra I. V. 6. sutras 170, 171 आ. स. Edition:- "सव्वे सरा नियइंति, तक्का जत्थ न विजइ, मई तत्थ न गाहिया, ओए, अप्पइट्ठाणस्स खेयने, से न दोहे न हस्से न बट्टे न तंसे न चउरंसे न परिमंडले न नीले न लोहिए न हालिहे न सुक्किले न सुरभिगंधे न दुरभिगंधे न लित्ते न कडुए न कसाए न अंबिले न महुरे न कक्खडे न मउणे न गरुष न लहुए न उण्हे न निद्धे न लुक्खे न काऊ न रुहे न संगे न इत्थी न पुरिसे न अन्नहा परिन्ने सन्ने उवमा न विज्जए, अरूवी सत्ता, अपयस्त पयं नत्थि / से न सद्दे न रूवे न गंधे नरसेन फासे, इञ्चेव त्ति बेमि॥" _In जीवविचारप्रकरण, शांतिसूरि describes Siddha thus:-- ____ सिद्धाण नत्थि देहो, न आउकम्मं न पाणजोणीओ साइअणंता तेसिं ठिई जिणंदागमे भणिया // " (verse 48.) सिद्धाणंतचउक्के (सिद्धानंतचतुष्कान्). सिद्ध here means निष्पन्न accomplished, achieved. Hence सिद्धानंतचतुकान् means - those who have accomplished or achieved the अनंतचतुष्कं or The Four Infinities' viz. (1) अनन्तज्ञान or Infinite Knowledge (2) अनन्तदर्शन or Infinite Vision (3) अनन्तचारित्र or Infinite Character and (4) अनन्तवीर्य or Infinite Prowess or Exertion. घणकम्म (Sk. घणकर्म ) see notes on *stanza. 32. St. 26. पंचायार, (Sk. पंचाचार) The Five Con ducts or Behaviours' which an Acharya is to