________________ चित्त-समाधि :जैन योग जच्चिय देहावस्था जया ण ज्झाणावरोहिणी होइ / ज्झाएज्जो तववस्थो ट्ठियो णिसण्णो णिवण्णो वा // [ध्या० श० 36] अणियदकालो-सव्वकालेसु सुहपरिणामसंभवादो / एत्थ गाहाओ सव्वासु वट्टमाणा मुणओ जं देस-काल-चेठासु / वरकेवलाविलाहं पत्ता बहुसो खवियपावा // भूवोवघायरहिओ सो देसो ज्झायमाणस्स // णिच्चं चिय जुवइ-पसू-गQसय-कुसीलवज्जियं जइणो। ठाणं वियणं भणियं विसेसवो ज्झाणकालम्मि // थिरकयजोगाणं पुण मुणीण झाणेसु णिच्चलमणाणं / कालो वि सो च्चिय जहिं जोगसमाहाणमुत्तमं लहइ / ण उ दिवसणिसावेलादिणियमणं ज्झाइणो समए / तो देसकालचट्ठाणियमो ज्झाणस्स पत्थि समयम्मि / जोगाण समाहाणं जह होइ तहा पयइयव्वं // [ध्या० श० 40, 37, 35, 36, 38, 41] सालंबणो–ण च आलंबणेण विणा ज्झाण-पासायारोहणं संभवइ, आलंबणभूदणिस्सेणिआदीहि विणा पासादादिरोहमाणपुरिसाणमणुवलंभादो / एत्थ गाहा आलंबणाणि वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेहाओ। सामाइयावियाई सव्वमावासयाई च॥ विसमं हि समारोहइ बव्वालंबणो जहा पुरिसो। सुत्तादिकयालंबो तह झाणवरं समारहइ // [ध्या० श० 42, 43] सुठ्ठ त्तिरयणेसु भावियप्पा / ण च भावणाए विणा ज्झाणं संपज्जइ, एगवारेणेव बुद्धीए थिरत्ताणुववत्तीदो / एत्थ गाहा पुव्वकयब्मासो भावणाहि ज्झाणस्स जोग्गदमुवेदि / ताओ. य गाण-ईसण-चरित्त-वेरग्गजणियाओ॥ णाणे णिच्चमासो कुणइ मणोधारणं विसुद्धि च / णाणगुणमुणियसारो तो ज्झायइ णिच्चलमईओ // संकाइसल्लरहियो पसमत्थेयादिगुणगणोवईयो / होइ असंमूढमणो सणसुद्धोए ज्झाणम्मि //