________________ 86 ] नित्य नियम पूजा दोनों संभारे कूप जलसम, दरव घरमें परनिया / निज हाथ दीजे साथ लीजे, खाय खोया बह गया / / धनि साध शास्त्र अभयदिवैया, त्याग राग विरोधकों। विन दान श्रावक साधु दोनो, लहै नाहीं बोधकों // 8 // ॐ ह्रीं उत्तमत्यागधर्मागाय अयं निर्मपामीति स्वाहा / परिग्रह चौविस भेद, त्याग कर मनिराजजी / तृष्णाभाव उछेद, घटती जान घटाइये / / उत्तम आकिंचन गुण जानो, परिग्रह चिन्ता दुखही मानो। फांस तनकसी तनमें सालैं, चाह लंगोटीकी दुख भाले / भाले न समता सुख कभी नर, बिना मुनि मुद्रा धरै / धनि नगनपर तन नगन ठाड़े, सुर असुर पायनि परै / / घरमांहि तष्णा जो घटाबे, रुचि नहीं संसार सौ / बहु धन बुरा हूँ मला कहिये लीन पर उपगारसौं / 9 / / ॐ ह्रीं उत्तम आकिंचन्यधर्मागाय अर्ध्या निर्मपामीति स्वाहा / शील बाड नो राख, ब्रह्मभाव अन्तर लखो। करि दोनों अभिलाख, करहु सफल नर भव सदा / उत्तम ब्रह्मचर्य मन आनौ, माता बहिन सुता पहिचानौ / सहै बान वर्षा बहु सूरे, टिके न नैन-बाण लखि कूरे / / कूरे तियाके अशुचितनमें कामरोगी रति करें / बहु मृतक सड़हि मसानमांहीं काक ज्यों चोंचे भरै / संसारमें विषबेल नारी, तजि गये जोगीश्वरा / 'द्यानत' धरम दशपेंड चढिके शिवमहलमें पगधरा .10 // ह्रीं उत्तमब्रह्मचर्यधांगाय अध्यं निनपामोति स्वाहा /