________________ नित्य नियम पूजा __सवैया तेईसा सुन्दर षोडशकारण भावना निर्मल चित्त सुधारक धारै / कर्म अनेक हने अति दुर्धर जन्म जरा भय मृत्यु निवारै / / दुःख दरिद्र विपत्ति हरै भवसागरको पर पार उतारै / ज्ञान कहे यहि षोडशकारण, कर्म निवारण सिद्ध सुधारै॥ अथाशीर्वादः / जाप्य ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयै नमः / ॐ ह्रीं विनयसम्पन्नतायै नमः, ॐ ह्रीं शीलवताय नमः, ॐ ह्रीं अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगाय नमः, ॐ ह्रीं संवेगाय नमः, ॐ ह्रीं शक्तितस्त्यागाय नमः, ॐ ह्रीं शक्तितस्तपसे - नमः, ॐ ह्रीं साधुसमाध्यै नमः, ॐ ह्रीं वैयावृत्यकरणाय नमः, ॐ ह्रीं अर्हद्भक्त्ये नमः, ॐ ह्रीं आचार्यभक्त्यै नमः, ॐ ह्रीं बहूश्रुतभक्त्यै नमः, ॐ ह्रीं प्रवचनभक्त्यै नमः, ॐ ह्रीं आवश्यकपरिहाण्यै नमः, ॐ हीं मार्गप्रभावनायै नमः, ॐ ह्रीं प्रवचनवत्सलत्वाय नमः / / 16 / / पंचमेरु पूजा गीता छन्द तीर्थंकरोंके हवन जलते भये तीरथ शर्मदा / तातै प्रदच्छन देत सुरगन, पंचमेरुनकी सदा / / दो जलधि ढाईद्वीपमें सब गनत मूल बिराजहीं। पूजौं असी जिनधाम-प्रतिमा, होहि सुख दुःख भाजही 1: ॐ ह्रीं पंचमेरु जिन सम्बन्धि चैत्यालयस्थ-जिनप्रतिमा समूह