________________ 72) नित्य नियम पूजा सोलहकारण पूजा अडिल्ल-सोलहकारण भाय तीर्थंकर जे भये, हरष इन्द्र अपार मेरु पं ले गये / पूजा करि निज धन्य लख्यो बहु चावसों। हमहूँ षोडशकारण भावै भावसों / ॐ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्धयादि षोडशकारणानि अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / अथाष्टक / कंचन झारी निर्मल नीर, पूजों जिनवर गुण गंभीर / परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो / दरश-विशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकर-पद-दाय / परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो / ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धि 1, विनयसम्पन्नता 2, शीलवतेष्वनतिचार 3 अभीक्ष्णज्ञानोपयोग 4, संवेग 5, शक्तितस्त्याग 6, शक्तितस्तप 7, साधु समाधो 8, वैयावृत्यकरण 9, अर्हद्भक्ति 10, आचार्य भक्ति 11, बहुश्रुतभक्ति 12, प्रवचन भक्ति 13, आवश्यकापरिहाणि 14, मार्ग प्रभावना 15, प्रवचन वात्सल्य 16, इतिषोडश कारणेभ्यः नमः // जलं // 1 // चंदन घसों कपूर मिलाय, पूजौं श्री जिनवर के पाय / परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ।दरश-वि०२॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि षोडशकारणेभ्यः चन्दनं नि० स्वाहा /