________________ नित्य नियम पूजा [ 243 श्री पार्श्वनाथ चालीसा // दोहा / / शीश नवा अरिहंतको, सिद्धन करू प्रणाम / उपाध्याय आचार्यका ले सुखकारी नाम / / सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार / अहिच्छत्र और पार्श्वको, मन मन्दिरमें धार / // चौपाई // पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तम व्रतके धारी सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवनके देवा / तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जगका निस्तारा। अश्वसैनके राजदुलारे, वामाकी आंखोंके तारे / काशीजीके स्वामी कहाये, सारी परजा मौज उड़ाये / इक दिन सब मित्रोंको लेके, सैर करनको बनमें पहुँचे / हाथी पर कस कर अम्बारी, इक जंगल में गई सवारी / एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले बचन सुनाकर / तपस्वी ! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़में जीव जलाते / तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया। निकले नाग नागिनी कारे, मरनेके थे निकट बिचारे / / रहम प्रभुके दिल में आया, तभी मन्त्र नवकार सुनाया। मर कर वो पाताल सिधाये, पद्मावति धरणेन्द्र कहाये / तपसी मर कर देव कहाया, नाम कमठ ग्रन्थोंमें गाया।