________________ नित्य नियम पूजा [ 235 इतिहास पुरातन बदलाता, यह भूमि पवित्र मनोहर है। भारतकी संस्कृतिका अनुपम, मानो यह क्षेत्र धरोहर है। खर दूषण राजो एकसमय, दंडकवनमें जब आया था। वनकी सुन्दरता लखमनमें,उसका चित अति हुलसाया था। हो हर्षित तभी यहां उसने, वालूकी मूर्ति बनवाई थी। सुन्दर मंदिर बनवा करके, यह मूर्ति उसमें पधराई थी। प्रतिष्ठानमें बिंब प्रतिष्ठाकर, अपना नरभव सफल किया। सबने मिल प्रभुकी पूजा की, अरु महापुण्यका लाभ लिया। आचार्य माघनंदी स्वामी, कर भ्रमण यहां पधारे थे। उनके सुपुत्र शलिवाहन, शाककर्ता नप कहलाये थे। पैठण नगरी सुप्रसिद्ध यहां, जिनमंदिर निर्मित है भारी / मुनिसुव्रत प्रभुकी श्यामवर्ण प्रतिमा है जिसमें तुखकारी // यह चतर्थ कालकी प्रतिमा है जिसका है अतिशय भारी। भक्तोके संकट मिटजाते वांछित फल पाते है नरनारी / / चिमना पंडितने मावसको पुनमका चांद दिखाया था। प्रभुकी भक्तिसे प्रेरित हो सबने मिल हर्ष मनाया था / बिन धूप सुगंधित धुवा यहां मंदिरजी में से आता है। भक्तोके द्वारा नंदा दीप निशदिन अखांडसा जलता है / / मावस पुनमकी रात्रीमें जय घण्टा नाद सन पाता हैं। स्वर्गोसे सुरगणका समूह, प्रभु दर्शनको नित आता है / /