________________ नित्य नियम पूजा [ 113 जय दर्शन ज्ञान चरित्र तीन, ये रत्न महा उज्ज्वल प्रवीन / जय चार प्रकार सुदेव सार, तीनके गृह जिन मन्दिर अपार / / जो पूजै वसुविधि द्रव्यलाय, मैं इत जजि तुम पद शीशनाय / जो मुनिवर धारत अवधि चार,तिन पूजे भवि भव सिंधुपार / / जो आठ ऋद्धि मुनिवर धरंत, ते मोपै करुणा करि महन्त / चौबीस देवि जिन भक्ति लीन, बंदन ताको सु परोक्ष कीन / / जे ही तीन त्रिकोण मांहि, तिन नमत सदा आनन्द पाहि। जय जय जय श्री अरहंत विब तीन पद पूजू मैं खोइ डिंब / जो दश दिग्पाल कहें महान, जे दिशा नाम सो नाम जान / जे तिनके गृह जिनराज धाम, जे रत्नमई प्रतिमाभिराम / ध्वज तोरण घंटायुक्तसार, मोतिन माला लटकै अपार / जे ता मधि वेदि है अनूप, तहां राजत हैं जिनराज भूप / / जय मुद्रा शांति विराजमान, जा लखि वैराग्य बढ़े महान : जे देवि देव आय आय पूजै तिन पद मन वचन काय / जल मिष्ठ सु उज्ज्वल पय समान, गंदन मलयागिरको महान जे अक्षत अनियारे सु लाय जे पुष्पन की माला बनाय / चरु मधुर विविध ताजी अपार,दीपक मणिमय उद्योतकार। जे धूपसु कृष्णागर सुखेय, फल विविध भांतिके मिष्टलेय // वर अर्घ अनुपम करत देव, जिनराज चरण आगे चढ़ेव / फिर मुखतें स्तुति करते उचार हो करुणानिधि संसार तार।