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________________ 102/ नित्य नियम पूजा ह्रीं गेलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट् पंचाशल्लक्ष सप्तनवतिसहस्त्र-- चतःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो जल नि० // 1 // मलयागिर पावन चंदन बावन, तापबुझावन, घसि लीनो / धरि कनककटोरी, द्वैकरजोरी, तुमपदओरी, चितदीनो ।वसु. ह्रीं त्रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो चंदनं नि० // 2 // बहुभांति अनोखे तंदुल चोखे, लखि निरदोखे हम लिने / धरि कंचनथाली तुमगुणमाली, पुजविशाली करदीने।वसु. ह्रीं शैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्र चतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो अक्षतान नि० // 3 // शुभ पुष्पसजाति. है बहु भांति अलि लिपटाती, लेय वरं / धरि कनक-रकेबी करगह लेवी, तुम पदजुगकी, भेटधर वसु. ॐ ह्रीं त्रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्र। चतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो पुष्पं नि० // 4 // खुरमा जू गिदौड़ा बरफी पेंडा, घेवर मोदक भरि थारी। विधिपूर्वक कीने, घृतपयभीने, खंडमें लीने, सुखकारी बसु. ॐ ह्रीं रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो नैवेद्य नि० // 5 // मिथ्यात महातम छाय रह्यो मम, निजभव परणति न हिंसूझै / इह कारण पाकै दीप सजाकै, थाल धराकै हम पूजै॥वसु.। ह्रीं त्रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो दीपं नि० // 6 // दशगंध कुठाकै धूप बनाके निजकर लेके, धरि ज्वाला। तम धूम उडाई, दशदिशछाई बहुमहकाई अतिआला वसु..
SR No.032857
Book TitleNitya Niyam Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Pustakalay
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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