________________ [2 नित्य नियम पूजा हे त्रिभुवन के नाथ ! आप के दर्शन से मालूम होता। यह संसार जलधि चुल्लू जल सम हो गया अहो ऐसा // 1 // अहंसिद्धाचार्य ओ पाठक साधु महान / पंच परम गुरुको नम भव भवमें सुखदान // 2 // पुनः विधिवत् पृथ्वीतल पर मस्तक टेक कर नमस्कार करे। अर्थ-हे भगवान् ! आपके चरण कमलोंका दर्शन करके आज मेरे दोनों नेत्र सफल हो गये हैं और मेरा जन्म भी सफल हो गया है। हे तीन लोकके नाथ ! आपके दर्शन करने से ऐसा मालूम होता है कि जो मेरा संसार समुद्र अपार था सो आज चुल्लू भर पानीके समान थोड़ा रह गया है। अहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पंच परम गुरु भवर में सुख देनेवाला है मैं इनको नमस्कार करता हूँ। दर्शन पाठ दर्शनं देवदेवस्य, दर्शनं पाप-नाशनम् / दर्शनं स्वर्ग सोपानं दर्शनं मोक्ष-साधनम् // 1 // दर्शनेन जिनेंद्राणां साधुनां वन्दनेन च / न चिरं तिष्ठते पापं, छिद्रहस्ते यथोदकम् // 2 // वीतराग-मुखं दृष्टवा, पद्मराग सम प्रमं / जन्म-जन्म-कृतं पापं, दर्शनेन विनश्यति // 3 // दर्शनं जिन सूर्यस्य संसार ध्वान्त-नाशनम् / बोधनं चित्तपद्मस्य समस्तार्थ-प्रकाशनम् / /