________________ 84 ज्ञानानन्द श्रावकाचार पानी एक क्षण ठहरता हो, तुरन्त न निकल जाता हो, अनुक्रम से धीरे धीरे छनता हो, छानना चाहिये। वह कपडा जिस बर्तन में पानी छाना जाना है उसके मुख से तीन गुणा लम्बा तथा इतना चौडा कि दोहरा करने पर चौकोर हो जावे ऐसा जानना (ऐसा होना चाहिये) अथवा बिना छना ही यत्नपूर्वक घर पर ले जाकर अच्छी तरह यत्नपूर्वक छानना चाहिये / छानते समय अनछने जल की कोई बूंद जमीन पर न गिरे एवं न ही अनछने जल की कोई बूंद छने पानी में अंश मात्र भी गिरनी चाहिये। पानी को इसप्रकार से छानना चाहिये। अनछने पानी के हाथों को छने जल से अनछने जल के पात्र में धोवे। हाथ धाने के बाद पानी छाने जाने वाले बर्तन को पकडे तथा तीन बार छने जल से धोने के बाद उसके मुंह पर (पानी छनने में काम लिया जाने वाला) छनना लगावे / बांये हाथ में डोल, बाल्टी, कटोरा अथवा तपेला (भगोना) रखे, दांये हाथ में गिलास आदि लेकर पानी भर कर डाले / बाल्टी को ऊपर लिये लिये ही पानी छाने जाने वाले बर्तन पर झुकावे, जिससे अनुक्रम से थोडा-थोडा पानी छने / अधिक पानी छानना हो तो बर्तन को ऊपर उठाकर छनने के ऊपर धीरे-धीरे तिरछा करें तथा अनछने पानी के हाथ धोकर आसपास के सूखे स्थान से छनने को पकडकर उल्टा करें / छने पानी से अवशेष बचे हुये अनछने पानी में जीवाणी करें अथवा उस बर्तन में जीवाणी करें / बीच में जीवाणी की तरफ से छनना चारों कोनों से ही पकड़ें नहीं तथा फिर चार पहर के भीतर ही जहां से जल लाया गया है वहां ही कुये पर उस (अनछने) जिवाणी वाले जल को पहुंचा दें। उस (जीवाणी के जल वाले बर्तन) को कडे से उल्टा बांध कर डोरी को वापस पांचसात अंगुल की लकडी बांध कर लोटे के अन्दर इस तरह लगा दें कि लकडी के सहारे से लोटा सीधा कुंये के अन्दर चला जावे तथा कुये के पैंदे जल के ऊपर लोटा पहुंच जावे तब ऊपर से डोर को हिला दें। लोटे में से लकडी