________________ श्रावक-वर्णनाधिकार 73 यहां कोई प्रश्न करे - इसप्रकार के नाना वेष कैसे हुये ? उसे उत्तर देते हैं - जैसे राजा के सुभट शत्रु की सेना से लडने चले, फिर दुश्मनों के शस्त्र प्रहार से कायर होकर भागे, पर राजा इन्हें भगोडा जानकर नगर में घुसने से मना करदे (घुसने न दे) तथा नगर के बाहर ही किसी स्थान पर इनका सर मूंड कर गधे पर चढाकर नगर के चारों ओर घुमावे, किसी को लाल कपडे पहनावे, किसी को कत्थे के रंग के कपडे पहनावे, किसी को चूडियां पहनावे, किसी का विधवा का सा स्वांग बनावे, किसी को सुहागिन स्त्री का स्वांग बनावे, किसी से भीख मंगवावे, इत्यादि नाना प्रकार के स्वांग करके नगर के बाहर निकाल दे। यदि युद्ध में जीत कर आवे तो राजा उनका सम्मान करे, नाना प्रकार के पद दे तथा उनकी बहुत प्रशंसा करे। इस दृष्टान्त के अनुसार दृष्टान्त जानना। तीर्थंकर देव त्रिलोकीनाथ रूपी सर्वोत्कृष्ट राजा के भक्त पुरुष भगवान की आज्ञा मस्तक पर धारणकर मोह कर्म रूपी शत्रु से लडने के लिये गये, ज्ञान वैराग्य की सेना को लुटाकर आप कायर होकर भागे / उन्हें भगवान की आज्ञानुसार (नियमानुसार) विधाता कर्म ने गृहस्थपने रूपी नगर से निकाल कर बाहर ही रखा तथा रक्ताम्बर, टाटाम्बर (पहनने के टाट के वस्त्र), श्वेताम्बर, जटाधारी, कनफटा आदि नाना प्रकार के स्वांग बनाये। जो भक्त पुरुष मोह कर्म की फौज को जीत पाये, उन्हें अरिहन्त देव ने नगर का राज्य दिया, उनकी अपने मुख से बहुत बढ़ाई की तथा भविष्यकाल में तीर्थंकर होगें वे भी प्रशंसा करेंगे / ऐसा स्वरूप जानना / इसप्रकार ग्यारह प्रतिमाओं के स्वरूप का विशेष वर्णन किया।