________________ श्रावक-वर्णनाधिकार 57 विचिकित्सा अर्थात ग्लानि (4) अन्यदृष्टिप्रशंसा अर्थात मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा करना (5) अन्यदृष्टिसंस्तव अर्थात मिथ्यादृष्टि के समीप जाकर उसकी स्तुति करना। अहिंसाणुव्रत के अतिचार इसी प्रकार अहिंसाणुव्रत के पांच अतिचार हैं - (1) बंध अर्थात (जीव को) बांधना (2) वध अर्थात (जीव को) जान से मारना (3) छेद अर्थात छेदना (4) अतिभारारोपण अर्थात बहुत (शक्ति से अधिक) बोझ लादना (5) निरोधन अर्थात खान-पान आदि रोकना (अथवा समय पर) न देना। सत्याणुव्रत के अतिचार सत्याणुव्रत के पांच अतिचार इसप्रकार हैं :- (1) मिथ्योपदेशअर्थात झूठा उपदेश देना (2) रहोभ्याख्यान अर्थात किसी की गुप्त बात प्रकट कर देना (3) कूटलेखक्रिया अर्थात झूठे खाते (हिसाब) आदि लिखना (4) न्यासापहार अर्थात किसी की अमानत रखी वस्तु को अस्तव्यस्त कर देना (अथवा वापस न देना) (5) साकार मंत्रभेद अर्थात किसी पुरुष के चहरे आदि के चिन्ह देख कर उसका अभिप्राय प्रकट कर देना / अचौर्याणुव्रत के अतिचार अचौर्याणुव्रत के पांच अतिचार - (1) स्तेन प्रयोग अर्थात चोरी का उपाय बताना (2) तदाहृतादान अर्थात चोरी से प्राप्त किया माल खरीदना (3) विरुद्ध-राज्यातिक्रमअर्थात (राज्य का )टैक्स चुराना (4) हीनाधिकमानोन्मानअर्थात तौल में कम देना या अधिक लेना (5) प्रतिरूपकव्यवहार अर्थात अधिक मूल्य की वस्तु कम मूल्य में खरीदना। ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार ब्रह्मचर्याणुव्रत के पांच अतिचार - (1) पर विवाहकरण अर्थात दूसरों का विवाह कराना (2) इत्वारिका परिगृहीतागमन अर्थात