________________ 44 ज्ञानानन्द श्रावकाचार को शस्त्र आदि से छेदना, हाथ से तोडना / ऐसा हिंसादान का स्वरूप जानना / प्रमादचर्या :- आगे प्रमादचर्या का स्वरूप कहते हैं / प्रमाद लिये धरती पर बिना प्रयोजन इधर-उधर फिरते रहना अथवा हिलते रहना, बिना देखे ही बैठ जाना, बिना देखे वस्तु को उठा अथवा रख देना, इत्यादि प्रमाद चर्या का स्वरूप है। __ पापोपदेश :- पश्चात् पापोपदेश स्वरूप कहते हैं / ऐसा उपदेश देना (यहां भी ऐसे उपदेश देना पापोपदेश है न कि न देना) - जैसे अमुक व्यक्ति तू मकान बनवाले, कुआं, बावडी, तालाब बनवाले, अथवा खेत बाग लगाले, खेत में निदानी (खेत में से खर-पतवार आदि निरर्थक छोटे पौधों को उखाड फैंकना) का समय आ गया है, उसकी निदानी करा / अथवा तेरा खेत सूख रहा है, इसे जल से सींच, अथवा तेरी पुत्री कुंआरी है उसका विवाह कर, तेरा पुत्र कुंआरा है उसकी शादी कर। अथवा बाजार में नींबू, आम, ककडी, खरबूजा आदि फल बिक रहे हैं उन्हें खरीद ला / तुरई, करेला, टींडा आदि हरित काय खरीदने मंगाने का उपदेश देना / अथवा चूल्हा जलाने, आंगन लिपवाने, गोबर (एकत्रित) करने का उपदेश देना। कपडे धुलाने का, स्नान करने का, स्त्रियों को मस्तक के केश संवारने का, खाट (पलंग ) को धूप में डालने का, कपड़ों में से ये निकालने का, दीपक जलाने आदि का उपदेश देना, बीधा गला अनाज मंगाने का, अथवा घी, तेल, गुड, खांड, अनाज आदि वस्तुओं का भंडार रखने का उपदेश देना / बैल, भैंसा, ऊंट (के उपर सामान) लादने का, देशान्तर से वस्तुयें मंगाने का, भेजने का उपदेश देना। दान, तप, शील, संयम के पालन में, प्रोषध, प्रतिज्ञा आदि धर्म कार्य में कोई पुरुष लगा हो तो, उसे इन्कार करना (रोकना), ऐसे उपदेश