________________ 35 श्रावक-वर्णनाधिकार चातुर्मास (वर्षा के मौसम) में तीन दिन, सर्दियों में सात दिन तथा गर्मियों में पांच दिन से अधिक समय पूर्व का आटा (उपलक्षण से मसाले आदि पिसी हुई चीजें ) आदि भक्षण नहीं करता / दो दिन से अधिक पहले का दही नहीं खाता अर्थात आज का जमाया दही कल तक ही खाता है, जामन देने के बाद आठ पहर (चौबीस घंटे) की मर्यादा है (अर्थात इसके बाद में नहीं खाता)। बीधी (कीडा लगी हुई ) वस्तुओं का भक्षण करने, दही और गुड मिलाकर खाने, जलेबी इत्यादि का एवं मक्खन में त्रस जीव एवं निगोद उत्पन्न होते हैं, का त्याग करता है तथा नैनू ( दूध या दही को बिलो कर निकाला गया घी, गर्म करने से पहले) की मर्यादा दो घडी (अडतालीस मिनिट) की होती है, कुछ आचार्यों ने (अपने) शास्त्रों में (यह मर्यादा) चार घडी की भी लिखी है, इसलिये दो घडी अथवा चार घडी बाद इसमें जीव उत्पन्न होने लगने से ये अभक्ष्य हैं। अत: तुरन्त बिलोया भी खाना उचित नहीं है / इसके खाने में मांस के खाने जितना दोष लगता है। इनमें राग भाव बहुत होता है। ___ बैंगन एवं साधारण वनस्पति तथा दही बडा, कांजीबडा, बर्फ, ओले, मिट्टी, विष तथा रात्रि में भोजन करने का त्याग करता है / सूखे पांच उदम्बर फल एवं बैंगन का भी भक्ष्ण नहीं करता है, इनके खाने से रोग भी बहुत होते हैं / चलित रस (जिन वस्तुओं का स्वाद बिगड/बदल गया हो) वाली तथा बासी (पिछले दिनों में बनाई गयी ) रसोई, मर्यादा के बाहर का आटा आदि तथा घी, तेल, मिठाई का भक्षण छोडता है, तथा आम आदि फल एवं मेवे जिनका स्वाद बदल गया हो, का भक्षण नहीं करता है / बडे-बडे झाडी बेर बहुत कोमल होते हैं, हाथ से तोडने पर भी उनकी (उनमें रहे जीवों की ) दया नहीं पलती, लटे मरती हैं, अत: त्याग ही देता है / इनमें काने (जीव सहित) बहुत होते हैं, उनमें लटें होती हैं / सहज के से दाग लगे (स्वाभाविक) आमों में भी डोरे जैसी बारीक लटें होती हैं, इसलिये बिना देखे इन्हें भी नहीं चूसता है / इस ही प्रकार काना