________________ वंदनाधिकार फिर मनशुद्धि अर्थात प्रफुल्लित मन होना, महा हर्षायमान होना / (7) वचनशुद्धि :- फिर वचनशुद्धि अर्थात मिष्ट-मिष्ट वचन बोलना। (8) कायशुद्धि :- अर्थात विनयवान होकर शरीर के अंगोपांग को नम्रीभूत करना। (9) ऐषणा शुद्धि :- अर्थात दोष -रहित शुद्ध भोजन देना। नवधा भक्ति का ऐसा स्वरूप जानना / दातार के सात गुण अब दातार के सात गुण बताते हैं (1) श्रद्धान होना, भक्तिवान होना, शक्तिवान होना, शांतियुक्त होना (2) मुनिराजों को आहार देकर लौकिक सुख की इच्छा नहीं करना (3) क्षमावान होना (4) कपट रहित होना (5) अधिक सयाना नहीं होना (अपने सयानेपन का प्रदर्शन करने वाला न हो) (6) विषाद रहित होना , हर्ष संयुक्त होना (7) अहंकार रहित होना। दातार के ये सात गुण जानना / ऐसा दातार ही स्वर्ग आदि का सुख भोग कर परम्परा से मोक्षस्थान तक पहुंचता है, तथा ऐसे शुद्धोपयोगी मुनि ही तरण-तारण हैं / (ऐसे) आचार्य, उपाध्याय, साधुओं के चरण-कमलों को मेरा नमस्कार हो, मुझे कल्याण के कर्ता होवें / भवसागर में गिरते को बचावें। इसप्रकार मुनियों के स्वरूप का वर्णन किया। __ अत: हे भव्य ! यदि तू स्वयं के हित की वांछा रखता है तो ऐसे गुरुओं के चरणारविंद की सेवा कर तथा अन्य (कुगुरुओं) के सेवन को दूर से ही छोड। इसप्रकार गुरु के स्वरूप का कथन पूर्ण हुआ। ___ इसप्रकार आचार्य, उपाध्याय, साधु इन तीन प्रकार के गुरुओं का वर्णन किया, तीनों ही शुद्धोपयोगी हैं, इसलिये उनमें समानता है, विशेषता नहीं है / ऐसे गुरुओं की स्तुति की, नमस्कार किया तथा उनके गुणों का कथन किया। आगे ज्ञानानन्द पूरित निर्भर-निजरस-श्रावकाचार नाम के शास्त्र को जिनवाणी के अनुसार तथा मेरी बुद्धि अनुसार निरूपण करूंगा /