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________________ 308 ज्ञानानन्द श्रावकाचार वहां (दक्षिण) के राजा तथा रैयत (प्रजा) सारी जैन है तथा मुनिधर्म का वहां भी अभाव है / कुछ वर्ष पहले तक यथार्थ लिंग के धारक मुनि थे, अब काल दोष के कारण नहीं रहे / आस-पास में बहुत क्षेत्र हैं वहां होंगे (हो सकते हैं)। वहां करोडों रुपयों के काम के शिखरबंध बहुमूल्य पत्थरों के अथवा जिन पर सर्वत्र तांबे के पत्र के तीन कोट जिनके व्यास पाव (चौथाई) कोस हैं ऐसे सोलह बडे-बडे जिनमंदिर विराजमान हैं / जिनमें मूंगे, लहसुनिया आदि रत्नों के छोटे जिनबिम्ब बहुत हैं तथा अष्टाह्निका के दिनों में रथयात्रा का बड़ा उत्सव होता है। वहां एक अठारह धनुष (एक धनुष बराबर लगभग दो मीटर) ऊंचा, एक नव धनुष ऊंचा, एक तीन धनुष ऊंचा कायोत्सर्ग मुद्रा में भिन्नभिन्न तीन देशों में तीन जिनबिम्ब स्थित हैं / वहां यात्रा जुडती है / उनका निराभरण पूजन होता है / उनका नाम गोमट्टस्वामी है / इसप्रकार के गोमट्टस्वामी आदि बहुत तीर्थ हैं / वहां शीतकाल में भी ग्रीष्म ऋतु जैसी गरमी पडती है तथा मुख्य रूप से चावल का भोजन विशेष है / वहां की भाषा को यहां के लोग समझते नहीं हैं, दुभाषियों के द्वारा समझाया जाता है / सुरंगपट्टन तक तो थोडे बहुत यहां के देश के लोग पाये जाते हैं / इसलिये यहां की भाषा को समझा देते हैं / सुरंगपट्टन के मनुष्य भी वैसे ही बोलते हैं / इससे आगे यहां के लोग नहीं हैं / सुरंगपट्टन आदि से (दुभाषियों को) साथ लेकर जाते हैं / हम उनका अवलोकन कर आये हैं (वहां जा आये हैं ) / यहां से एक हजार अथवा बारह सौ कोस दूर जैनबद्री नगर है / वहां जिनमंदिर में धवला आदि सिद्धान्त ग्रन्थ आदि तथा अन्य भी पूर्व एवं अपूर्व ग्रन्थ ताडपत्रों पर अथवा बांस के कागजों पर कर्णाटकी लिपि में अथवा मराठी लिपि में अथवा गुजराती लिपि में अथवा तेलगूदेश की लिपि में अथवा यहां के देश की लिपि में लिखे कई गाडियों में वहन के
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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