________________ 306 ज्ञानानन्द श्रावकाचार आदि शरीर का साधन करने के बाद दो पहर दिन चढने से लेकर दो घडी दिन रहने पर्यन्त तक सुदर्शन मेरू के चैत्यालय से लेकर समस्त चैत्यालयों का पूजन इन्द्रध्वज पूजा के अनुसार होगा। इसके बाद चबूतरे की तीन प्रदक्षिणा देकर चारों ओर आरती होगी / इसके बाद सर्वरात्रि में चारों ओर जागरण होगा। __ सर्वत्र रूपा (चांदी), सोने, जरी के अथवा तबक (वर्क) के अथवा चित्रों से अथवा अभ्रक के काम से, समवशरण सदृश्य जगमगाहट लिये, शोभा बनेगी तथा लाखों चांदी-सोने के दीपक तथा फूल पूजा के लिये बनाये गये हैं / एक कल का (मशीन से चलने वाला) रथ बना है, जो बिना बैलों, बिना आदमियों, के मात्र कल को फिराने (मशीन घुमाने) से चलेगा। उस पर श्रीजी विराजमान होंगे तथा अन्य भी अनेक प्रकार की सवारियां बनेंगी / इत्यादि अद्भुत आश्चर्यकारी शोभा होगी, ऐसा जानना / सौ-दो सौ कोस के जैन बंधु सभी संघ बना-बना कर परिवार सहित पधारेंगे / यहां जैनियों का बडा समुदाय है ही तथा माघ सुदी दशमी के दिन लाखों आदमी अनेक हाथी, घोडों, पालकी, निशान, अनेक नौबत नगारे तथा सब प्रकार के बाजे (वाद्य यंत्रों) सहित बहुत उत्सव से, इन्द्रों द्वारा की गयी भक्ति की उपमा सहित चैत्यालय से श्रीजी रथ पर विराजमान होकर अथवा हाथी के अहोदे पर विराजमान होकर शहर के बाहर तेरह द्वीप की रचना में जा विराजमान होगें। वहां फाल्गुण वदी चौथ तक ही पूजन होगा एवं नित्य शास्त्र का व्याख्यान, तत्वों का निर्णय, पठन-पाठन, जागरण आदि कार्य भी चतुर्थी तक (फाल्गुण वदी चौथ तक) ही होगा / उसके बाद श्रीजी वापस चैत्यालय में आ विराजेंगे। इसके बाद भी देश-देश के यात्रि पांच-सात दिन रहेंगे / इसप्रकार की उत्सव की महिमा जानना / अतः अपने को कृतार्थ करने के लिये सारे देश तथा प्रदेश के जैन बंधुओं को अग्रिम